सुस्वागतम्

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20 जुलाई 2011

21 जुलाई



आज राष्ट्रीय ध्वज दिवस के अवसर पर समग्र देशवासियों को बधाई! आज ही के दिन 1947 में संविधान सभा द्वारा इसे ADOPT किया गया था।


आदमी मुसाफ़िर है, आता है और जाता है,
आते-जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है।


21 जुलाई, आज ही के दिन 1920 में अविभाजित हिन्दुस्तान के रावलपिंडी (अब पाकिस्तान में) जन्म हुआ था गीतकार, शायर आनंद बख्शी साहब का। गायक बनने का सपना लेकर बंबई आए थे, लेकिन क़िस्मत ने उन्हें गीतकार के रूप में सफलता दिलाई। इस सफलता का पहला स्वाद चखा उन्होंने सुनील दत्त और नूतन अभिनीत फिल्म मिलन से।






चार बार उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कारों से नवाज़ा गया।
पहली बार - 1977 फिल्म अपनापन - गीत आदमी मुसाफ़िर है।
दूसरी बार - 1981 में फिल्म इक दूजे के लिए - गीत तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन ।
तीसरी बार - 1995 में दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे - गीत तुझे देखा तो ये जाना सनम। चौथी बार - 1999 में फिल्म ताल - गीत इश्क बिना क्या जीना यारो ।





गायक बनने का ख़्वाब संजोए वे बंबई आए थे, बन गए गीतकार, परंतु उन्होंने कुछ गीतों में अपनी आवाज़ भी दी जैसे - फ़िल्म चरस के गीत - के आजा तेरी याद आई, मोम की गुड़िया में - बागों में बहार आई /सुनो बातों-बातों में/मैं ढूँढ रहा था, फ़िल्म शोले की क़व्वाली(जो कि फ़िल्म में शामिल नहीं की गई) के चाँद सा कोई चेहरा, फ़िल्म बालिका वधु - जगत मुसाफ़िर खाना, फ़िल्म खान दोस्त - हर साल हमने तो सुना चर्चा इसी पैगाम का, फ़िल्म प्रेम योग - जिसे प्रेम का रंग चढ़ा हो, उसपे कोई भी रंग।

ऐसे में क्या दिल बरबस ही नहीं कह उठता कि

दिल क्या करे जब किसी को
किसी से प्यार हो जाए....

या फिर आदमी मुसाफ़िर है, आता है और जाता है,
आते-जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है।

आज उनके जन्म दिन के अवसर पर हम उन्हें यादों के श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।
प्रस्तुति - नीलम 'अंशु ' 

12 जुलाई 2011

दीवाने हैं, दीवानों को न घर चाहिए, मोहब्बत भरी एक नज़र चाहिए।


13 जुलाई 1939 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर में जन्में थे प्रकाश मेहरा । 1968 में प्रदर्शित हसीना मान जाएगी उनके द्वारा निर्देशित पहली फिल्म थी तथा 1996 में प्रदर्शित बाल ब्रह्मचारी अंतिम। अमिताभ बच्चन के साथ उनकी अच्छी ट्यूनिंग रही। 1973 में ज़ंजीर के ज़रिए ऐंग्री यंगमैन के रूप में उन्होंने अमिताभ बच्चन को पेश किया। ज़ंजीर से शुरू हुआ यह साथ खून पसीना, हेराफेरी, मुक्ददर का सिकंदर, लावारिस, नमक हलाल, शराबी (मूँछे हों तो नत्थु लाल जी जैसी) जादूगर तक चला। इस साथ ने दोनों के करियर में नए आयाम जोड़े। मुकद्दर का सिकंदर मेरे द्वारा जीवन में देखी गई पहली फिल्म थी। 

प्रकाश मेहरा निर्देशित हसीना मान जाएगी में जहां बतौर अभिनेत्री बबिता ने अभिनय ने किया था, वहीं 1999 में डेविड धवन निर्देशित हसीना मान जाएगी में करिश्मा कपूर ने।

आज जन्म दिन के अवसर पर समवेत स्वर परिवार की उन्हें भाव-भीनी श्रद्धांजलि।




प्रस्तुति - नीलम अंशु 

06 जुलाई 2011

चेतन आनंद के बहाने.......





आज जाने-माने निर्देशक - अभिनेता चेतन आनंद साहब की पुण्य तिथि है। उन्होंने नीचा नगर, टैक्सी ड्राइवर, फंटुश, काला बाजार, हंसते ज़ख्म, हक़ीकत, आखिरी ख़त, हीर रांझा, हिंदुस्तान की कसम, कुदरत जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। काला बाजार में अभिनय किया और हक़ीकत, आखिरी ख़त, कुदरत के वे स्कीन राईटर भी रहे।


हीर-रांझा की ख़ासियत यह है कि उसके संवाद गद्य शैली में न होकर पद्यात्मक हैं। कैफ़ी साहब के गीत तो लाजवाब हैं ही। 


हक़ी़क़त के नाम पर ज़ेहन में झट से एक गीत आता है - अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो। और होके मायूस उसने हमें भुलाया होगा। इसके अलावा रफ़ी साहब की आवाज़ में एक बेहद सुंदर तराना है - मस्ती में छेड़ के तराना कोई दिल का। 

1965 में फिल्म हक़ीक़त के लिए सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 1982 में कुदरत के लिए सर्वश्रेष्ठ कथा हेतु फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाज़ा गया



3 जनवरी 1915 को जन्में चेतन आनंद  1944 से 1994 यानी 50 वर्षों तक सक्रिय रहे फिल्मों में। 6 जुलाई 1997 को 82 वर्ष की आयू में उनका निधन हुआ। 




समवेत स्वर  परिवार की तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि।



प्रस्तुति - नीलम अंशु