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17 जुलाई 2012

बैंसवारा परिषद व आयुश काशीपुर (कोलकाता) द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन ।


बैंसवारा परिषद व आयुश काशीपुर (कोलकाता) 

द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन




बैंसवारा परिषद और आयुश काशीपुर के संयुक्त तत्वावधान में कोलकाता के काशीपुर अंचल में रविवार 15 जुलाई, 2012 की शाम कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।  आरंभ में जगेश तिवारी ने मां सरस्वति कि वंदना प्रस्तुत की। अध्यक्षता की वरिष्ठ कवि अरुण प्रकाश अवस्थी ने। बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे साहित्य त्रिवेणी के संपादक डॉ. कुंवरवीर सिंह मार्तंड और विशिष्ट अतिथि योगेन्द्र शुक्ल सुमन। शहर तथा उपनगरों से लगभग 30 कवियों और शायरों ने रात साढ़े दस बजे तक अनवरत चले इस काव्य समारोह में अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया और बांधे रखा। कवि तथा शायरों में शामिल रहे, प्रदीप धानुका, आरती सिंह, डॉ. गिरधर राय, रवि प्रताप सिंह, काली प्रसाद जायसवाल, मुजीब अख्तर, नीलम शर्मा अंशु, अंबर सिद्दीकी, असलम परवेज़ असलम, अनवर बाराबंकवी, अहमद कमाल हाश्मी, सलमा सहर, शंभु जालान निराला, मुज़्तर इफ़्तख़ारी. शिव सागर सिंह, हीरा लाल साव, युसुफ अख़्तर आदि। इस अवसर पर अंचल के वरिष्ठ नागरिकों का परिषद के अध्यक्ष दुर्गादत्त सिंह द्वारा अभिनंदन भी किया गया। कार्यक्रम के अंत में संस्था की तरफ से रवि प्रताप सिंह ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया। पूरे कार्यक्रम का संचालन प्रो. अगम शर्मा ने किया।





आरती सिहं की प्रस्तुति।















प्रदीप धानुका द्वारा प्रस्तुति।
















प्रस्तुत हैं कुछ चुनिंदा रचनाओँ की झलक बतौर बानगी:-

सैर करते हैं जो दरिया के किनारे आकर
कभी तो समझें वो मौजों के इशारे आकर
इतनी ऊंचाई पे मत जाओ कि डर लगने लगे
कि दिल चाहे कोई तुमको उतारे आकर।
(अहमद कमाल हाश्मी)

तुमको पाकर खूब खुश थे ज़िंदगी से हम
तुमको खोकर अजनबी से हो गए हम
साथ चलकर दो कदम तुम हो गए ओझल
अब पता पूछें तुम्हारा ही किसी से हम।
(शंभु जालान निराला)

चांद कहां हो तुम ?
कभी चंदा मामा बन लोरियां सुनाते हो
कभी बेटा बन मां के आंचल में छुप जाते हो
कभी संदेसा प्रियतमा का पिया तक पहुंचाते हो
कभी बादलों की ओट में जा प्रिया को तड़पाते हो
फिर चांदनी बन शीतलता भी बरसाते हो।
कभी ईद का चांद कहाते हो
तिस पर बैरी की उपमा भी पाते हो
तुम्हें बुरा नहीं लगता चांद ? 
(नीलम शर्मा अंशु)

मोहब्बत के समंदर में अगर तूफां नहीं होता
हमारी कश्ती दिल का सफ़र आसां नहीं होता
मोहब्बत की ख़लिश में फिर कोई लज़्ज़त नहीं मिलती
तेरा तीर-ए-नज़र दिल में अगर मेहमां नहीं होता।
(युसुफ़ अख्तर)

नेता से अभिनेता, कंपाउडर से डॉक्टर, चपरासी से मास्टर, ड्राइवर से कंडक्टर, जज से बैरिस्टर तक हर किसी की इस चिंता पर कि देश रसातल में जा रहा है, रवि प्रताप सिंह ने बेहद विस्तार से उस छवि को प्रस्तुत किया और देश को रसातल में जाने से बचाने और संवारने संबंधी उपायों पर भी उनकी अपनी रचना के माध्यम से अभिव्यक्ति कुछ इस अंदाज़ में रही : - 


देश को धू-धू कर जलने से बचाने का
रवि प्रताप सिंह
बहुत सरल तरीका है
वह तरीका है स्वयं को सुधारने
अपने ही हाथों अपने देश को संवारने का
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दूध वाला दूध में पानी मिलाना छोड़ दे
वकील हत्यारे को बाइज़्ज़त बरी कराना छोड़ दे
छोड़ दें सासें अपनी बहुओं को जलाना
छोड़ दें बाबू फाईलों को दबाना
छोड़ दें नेता जनता को सब्ज़बाग दिखाना
बंद कर दे सफेदपोश शहर में दंगे कराना
बंद कर दे पंसारी तेजपत्ते में 
यूकिलिप्टस के पत्ते मिलाना
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जिस दिन ऐसा हो जाएगा
उस दिन देश सुधर जाएगा
लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा
शायद नहीं क्य़ोंकि
अभी तक मैं नहीं सुधरा हूं।
हम नहीं सुधरे हैं, ये नहीं सुधरे हैं, वो नहीं सुधरा
हम में से कोई नहीं सुधरा है
जिस दिन हम सब सुधर जाएंगे
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उस दिन देश संवर जाएगा। 
(रवि प्रताप सिंह)







प्रस्तुति - (नीलम शर्मा अंशु)



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13 जुलाई 2012

‘नावक के तीर’ का लोकार्पण व कवि सम्मेलन।


‘नावक के तीर’ का  लोकार्पण व कवि सम्मेलन।




शहर से देवनागरी में प्रकाशित त्रिभाषी साहित्यिक पत्रिका, साहित्य त्रिवेणी (हिन्दी,उर्दू,बांग्ला) के संपादक कुंवर वीर सिंह मार्तंड के प्रथम काव्य संकलन नावक के तीर का 11 जुलाई को स्थानीय जीवनानंद सभागार में दैनिक प्रभात वार्ता के कार्यकारी संपादक राज मिठौलिया ने लोकार्पण किया। कार्यक्रम का आरंभ सीमा बिश्वास की सरस्वति वंदना द्वारा हुआ। इस अवसर पर त्रैमासिक पत्रिका साहित्य त्रिवेणी के कवि सत्यनारायण सिंह आलोक पर केन्द्रित और नशा मुक्ति विशेषांकों का भी लोकार्पण किया गया। राज मिठौलिया ने कहा कि देवनागरी में त्रिभाषी रूप में प्रकाशन इस पत्रिका की विलक्षणता है। यह अपने-आप में अनूठा प्रयास है। इस मौके पर भारत मित्र के संपादक मोहम्मद इसराइल अंसारी, पत्रकार प्रवीर चट्टोपाध्याय,  उस्ताद शायर हलीम साबिर आदि प्रबुद्धजनों ने मंच की शोभा बढाई। 



मंचासीन अतिथियों सहित योगेन्द्र शुक्ल सुमन, रवि प्रताप सिंह, लखवीर सिंह निर्दोष, जयप्रकाश शर्मा (इलाहाबाद), सीमा बिश्वास, डॉ. गिरधर राय ने कवि मार्तड के व्यक्तित्व व कृतित्व पर अपने उद्गार व्यक्त किए। प्रो. श्याम लाल उपाध्याय की अनुपस्थिति में सुमन जी द्वारा उनके आलेख का पाठ किया गया। 


राज मिठौलिया

       उसके पश्चात् कार्यक्रम के दूसरे सत्र में हलीम साबिर साहब की अध्यक्षता में कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया, जिसमें गुलाम बुगदादी, रवि प्रताप सिह, मुज्तर इफ़्तखारी, योगेन्द्र शुक्ल सुमन, लखबीर सिंह निर्दोष, अनवर बाराबंकवी, अपूर्व बर्मन (बांगला), नंदलाल रौशन, रावेल पुष्प, गिरधर राय और इलाहाबाद से पधारे जय प्रकाश शर्मा ने शिरकत की। 


मुहम्मद इसराइल अंसारी (माइक पर)
जहां जय प्रकाश शर्मा (इलाहाबाद) ने तरन्नुम में प्रस्तुत अपने गीतों से श्रोताओं को अभिभूत कर दिया, वहीं रवि प्रताप सिंह ने अपने प्रस्तुतिकरण के चिर-परिचित अंदाज़ में अपनी कविता से यह कहते हुए मुग्ध किया कि
भाव की अभिव्यंजना में खो गया हूं आजकल,
मैं लिखूं कविता कोई या लिखूं कोई ग़ज़ल,
लीक पर यदि पग पड़े तो मुड़ चला हूं
पर परिधि से पर लगा कर उड़ चला हूं
लक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में स्वछन्द विचरण कर रहा हूं
भाव की अभिव्यक्ति का मैं चरित्र चित्रण कर रहा हूं
चित्र में अंकित है मेरी तूलिका का आत्मबल
मैं लिखू कविता कोई या लिखूं कोई ग़ज़ल।


काव्रय पाठ - रवि प्रताप सिंह

मुज़्तर इफ्तखारी की बानगी देखें
उदासियां देरे चेहरे की सह नहीं सकता
मगर मैं मां से अलग रह नहीं सकता
इस महफिल में तुम ही बताओ मुझसे बेहतर कौन है
लब पे मीठे बोल हैं दिल में खंज़र कितने हैं।


गज़ल पेश करते मुज्तर इफ़्तखारी


रावेल पुष्प ने अपनी कविता, मैं हूं पावेल और गिरधर राय ने मेरा क्या है मैं ऐसे ही गीत सुनाउंगा कविताओं के माध्यम से अपनी रचनात्मक अभिव्यक्तियों से समां बांधा।
कविता पेश करते रावेल पुष्प

डॉ. गिरधर राय


अब भी गुलों में रंग है, खुश्बु है, प्यास है
जो तू नहीं पास तो हर शै उदास है।
- (योगेंद्र शुक्ल सुमन) 

मैं जिधर से भी गुज़रता हूं, मसीहा को अपने साथ चलते पाता हूं। (निर्दोष)

मुहब्बत मेरी पूजा है, मेरा रोजा है
यही दैर-ओ-हरम, यही शिवाला है। 
- (नंदलाल रौशन)


अनवर बाराबंकवी
जयप्रकाश शर्मा


















दोनों ही सत्रों का कुशल संचालन जान-माने कवि और शायर अगम शर्मा ने किया। कार्यक्रम में अशोक सिंह अकेला, जयकुमार रुसवा, ब्रजमोहन सिंह, आरती सिंह, जीवन सिंह, नीलम शर्मा अंशु, प्रदीप धानुका, दिनेश धानुका, परवेश पटियालवी, लक्ष्मी जायसवाल, सहित अनेक गणमान्य व्यक्तित्व व साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।


प्रस्तुति  व तस्वीरें  नीलम शर्मा अंशु




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