बैंसवारा परिषद व आयुश काशीपुर (कोलकाता)
द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन ।
बैंसवारा परिषद और
आयुश काशीपुर के संयुक्त तत्वावधान में कोलकाता के काशीपुर अंचल में रविवार 15
जुलाई, 2012 की शाम कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। आरंभ में जगेश तिवारी ने मां सरस्वति कि वंदना
प्रस्तुत की। अध्यक्षता की वरिष्ठ कवि अरुण प्रकाश अवस्थी ने। बतौर मुख्य अतिथि
उपस्थित रहे साहित्य त्रिवेणी के संपादक डॉ. कुंवरवीर सिंह ‘मार्तंड’ और विशिष्ट अतिथि
योगेन्द्र शुक्ल ‘सुमन’। शहर तथा उपनगरों से लगभग 30 कवियों और शायरों ने रात साढ़े दस
बजे तक अनवरत चले इस काव्य समारोह में अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया
और बांधे रखा। कवि तथा शायरों में शामिल रहे, प्रदीप धानुका, आरती सिंह, डॉ. गिरधर
राय, रवि प्रताप सिंह, काली प्रसाद जायसवाल, मुजीब अख्तर, नीलम शर्मा ‘अंशु’, अंबर सिद्दीकी, असलम
परवेज़ असलम, अनवर बाराबंकवी, अहमद कमाल हाश्मी, सलमा सहर, शंभु जालान ‘निराला’, मुज़्तर
इफ़्तख़ारी. शिव सागर सिंह, हीरा लाल साव, युसुफ अख़्तर आदि। इस अवसर पर अंचल के
वरिष्ठ नागरिकों का परिषद के अध्यक्ष दुर्गादत्त सिंह द्वारा अभिनंदन भी किया गया।
कार्यक्रम के अंत में संस्था की तरफ से रवि प्रताप सिंह ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित
किया। पूरे कार्यक्रम का संचालन प्रो. अगम शर्मा ने किया।
आरती सिहं की प्रस्तुति। |
प्रदीप धानुका द्वारा प्रस्तुति। |
“सैर करते हैं जो
दरिया के किनारे आकर
कभी तो समझें वो
मौजों के इशारे आकर
इतनी ऊंचाई पे मत
जाओ कि डर लगने लगे
कि दिल चाहे कोई
तुमको उतारे आकर।”
(अहमद कमाल हाश्मी)
“तुमको पाकर खूब खुश
थे ज़िंदगी से हम
तुमको खोकर अजनबी
से हो गए हम
साथ चलकर दो कदम तुम
हो गए ओझल
अब पता पूछें
तुम्हारा ही किसी से हम।”
(शंभु जालान ‘निराला’)
“चांद कहां हो तुम ?
कभी चंदा मामा बन
लोरियां सुनाते हो
कभी बेटा बन मां के
आंचल में छुप जाते हो
कभी संदेसा
प्रियतमा का पिया तक पहुंचाते हो
कभी बादलों की ओट
में जा प्रिया को तड़पाते हो
फिर चांदनी बन
शीतलता भी बरसाते हो।
कभी ईद का चांद
कहाते हो
तिस पर बैरी की उपमा
भी पाते हो
तुम्हें बुरा नहीं
लगता चांद ?”
(नीलम शर्मा ‘अंशु’)
“मोहब्बत के समंदर
में अगर तूफां नहीं होता
हमारी कश्ती – ए – दिल का सफ़र आसां
नहीं होता
मोहब्बत की ख़लिश
में फिर कोई लज़्ज़त नहीं मिलती
तेरा तीर-ए-नज़र
दिल में अगर मेहमां नहीं होता।”
(युसुफ़ अख्तर)
नेता से अभिनेता,
कंपाउडर से डॉक्टर, चपरासी से मास्टर, ड्राइवर से कंडक्टर, जज से बैरिस्टर तक हर
किसी की इस चिंता पर कि देश रसातल में जा रहा है, रवि प्रताप सिंह ने बेहद विस्तार
से उस छवि को प्रस्तुत किया और देश को रसातल में जाने से बचाने और संवारने संबंधी उपायों पर भी उनकी अपनी रचना के माध्यम से अभिव्यक्ति कुछ इस अंदाज़ में रही : -
“देश को धू-धू कर
जलने से बचाने का
रवि प्रताप सिंह |
वह तरीका है स्वयं
को सुधारने
अपने ही हाथों अपने
देश को संवारने का
........................................
दूध वाला दूध में
पानी मिलाना छोड़ दे
वकील हत्यारे को
बाइज़्ज़त बरी कराना छोड़ दे
छोड़ दें सासें अपनी
बहुओं को जलाना
छोड़ दें बाबू
फाईलों को दबाना
छोड़ दें नेता जनता
को सब्ज़बाग दिखाना
बंद कर दे सफेदपोश
शहर में दंगे कराना
बंद कर दे पंसारी
तेजपत्ते में
यूकिलिप्टस के पत्ते मिलाना
………………………….
………………………..
जिस दिन ऐसा हो
जाएगा
उस दिन देश सुधर
जाएगा
लेकिन क्या ऐसा हो
पाएगा
शायद नहीं क्य़ोंकि
अभी तक मैं नहीं
सुधरा हूं।
हम नहीं सुधरे हैं,
ये नहीं सुधरे हैं, वो नहीं सुधरा
हम में से कोई नहीं
सुधरा है
जिस दिन हम सब सुधर
जाएंगे
..........................
...........................
उस दिन देश संवर
जाएगा।”
(रवि प्रताप सिंह)
प्रस्तुति - (नीलम शर्मा ‘अंशु’)
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