‘नावक के तीर’ का लोकार्पण व कवि सम्मेलन।
शहर से देवनागरी में प्रकाशित त्रिभाषी साहित्यिक पत्रिका, ‘साहित्य त्रिवेणी’ (हिन्दी,उर्दू,बांग्ला) के संपादक कुंवर वीर सिंह ‘मार्तंड’ के प्रथम काव्य संकलन ‘नावक के तीर’ का 11 जुलाई को स्थानीय जीवनानंद सभागार में दैनिक प्रभात वार्ता के कार्यकारी संपादक राज मिठौलिया ने लोकार्पण किया। कार्यक्रम का आरंभ सीमा बिश्वास की सरस्वति वंदना द्वारा हुआ। इस अवसर पर त्रैमासिक पत्रिका साहित्य त्रिवेणी के कवि सत्यनारायण सिंह आलोक पर केन्द्रित और नशा मुक्ति विशेषांकों का भी लोकार्पण किया गया। राज मिठौलिया ने कहा कि देवनागरी में त्रिभाषी रूप में प्रकाशन इस पत्रिका की विलक्षणता है। यह अपने-आप में अनूठा प्रयास है। इस मौके पर भारत मित्र के संपादक मोहम्मद इसराइल अंसारी, पत्रकार प्रवीर चट्टोपाध्याय, उस्ताद शायर हलीम साबिर आदि प्रबुद्धजनों ने मंच की शोभा बढाई।
मंचासीन
अतिथियों सहित योगेन्द्र शुक्ल सुमन, रवि प्रताप सिंह, लखवीर सिंह निर्दोष,
जयप्रकाश शर्मा (इलाहाबाद), सीमा बिश्वास, डॉ. गिरधर राय ने कवि मार्तड के
व्यक्तित्व व कृतित्व पर अपने उद्गार व्यक्त किए। प्रो. श्याम लाल उपाध्याय की
अनुपस्थिति में सुमन जी द्वारा उनके आलेख का पाठ किया गया।
राज मिठौलिया |
उसके पश्चात् कार्यक्रम के दूसरे सत्र
में हलीम साबिर साहब की अध्यक्षता में कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया, जिसमें
गुलाम बुगदादी, रवि प्रताप सिह, मुज्तर इफ़्तखारी, योगेन्द्र शुक्ल सुमन, लखबीर
सिंह निर्दोष, अनवर बाराबंकवी, अपूर्व बर्मन (बांगला), नंदलाल रौशन, रावेल पुष्प,
गिरधर राय और इलाहाबाद से पधारे जय प्रकाश शर्मा ने शिरकत की।
मुहम्मद इसराइल अंसारी (माइक पर) |
जहां जय
प्रकाश शर्मा (इलाहाबाद) ने तरन्नुम में प्रस्तुत अपने गीतों से श्रोताओं को अभिभूत कर दिया,
वहीं रवि प्रताप सिंह ने अपने प्रस्तुतिकरण के चिर-परिचित अंदाज़ में अपनी कविता से
यह कहते हुए मुग्ध किया कि
भाव की
अभिव्यंजना में खो गया हूं आजकल,
मैं लिखूं
कविता कोई या लिखूं कोई ग़ज़ल,
लीक पर
यदि पग पड़े तो मुड़ चला हूं
पर परिधि
से पर लगा कर उड़ चला हूं
लक्ष्य
के परिप्रेक्ष्य में स्वछन्द विचरण कर रहा हूं
भाव की
अभिव्यक्ति का मैं चरित्र चित्रण कर रहा हूं
चित्र
में अंकित है मेरी तूलिका का आत्मबल
मैं लिखू
कविता कोई या लिखूं कोई ग़ज़ल।
काव्रय पाठ - रवि प्रताप सिंह |
मुज़्तर इफ्तखारी की बानगी देखें –
उदासियां देरे चेहरे की सह नहीं सकता
मगर मैं मां से अलग रह नहीं सकता
इस महफिल में तुम ही बताओ मुझसे बेहतर
कौन है
लब पे
मीठे बोल हैं दिल में खंज़र कितने हैं।
गज़ल पेश करते मुज्तर इफ़्तखारी |
रावेल पुष्प ने अपनी कविता, ‘मैं हूं पावेल’ और गिरधर राय ने ‘मेरा क्या है मैं ऐसे ही गीत सुनाउंगा’ कविताओं के माध्यम से अपनी रचनात्मक
अभिव्यक्तियों से समां बांधा।
कविता पेश करते रावेल पुष्प |
अब भी गुलों में रंग है, खुश्बु है, प्यास है
जो तू नहीं पास तो हर शै उदास है।
- (योगेंद्र शुक्ल ‘सुमन’)
मैं जिधर से भी गुज़रता हूं, मसीहा को अपने साथ चलते पाता हूं। - (निर्दोष)
मुहब्बत मेरी पूजा है, मेरा रोजा है
यही दैर-ओ-हरम, यही शिवाला है।
- (नंदलाल रौशन)
अनवर बाराबंकवी |
जयप्रकाश शर्मा |
दोनों ही सत्रों का कुशल संचालन जान-माने कवि और शायर अगम शर्मा ने किया। कार्यक्रम में अशोक सिंह अकेला, जयकुमार रुसवा, ब्रजमोहन सिंह, आरती सिंह, जीवन सिंह, नीलम शर्मा ‘अंशु’, प्रदीप धानुका, दिनेश धानुका, परवेश पटियालवी, लक्ष्मी जायसवाल, सहित अनेक गणमान्य व्यक्तित्व व साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।
प्रस्तुति व तस्वीरें – नीलम शर्मा ‘अंशु’
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