सुस्वागतम्

समवेत स्वर पर पधारने हेतु आपका तह-ए-दिल से आभार। आपकी उपस्थिति हमारा उत्साहवर्धन करती है, कृपया अपनी बहुमूल्य टिप्पणी अवश्य दर्ज़ करें। -- नीलम शर्मा 'अंशु

30 अक्तूबर 2011

स्मरण - अमृता प्रीतम




     आज हर दिल महबूब शायरा और लेखिका अमृता प्रीतम जी 
           की पुण्यतिथि के मौके पर उन्हें याद करते हुए.....






(1) 

मैं तुम्हें फिर मिलूंगी !

मैं तुम्हें फिर मिलूंगी !
कहाँ, किस तरह, पता नहीं
शायद तुम्हारी कल्पना की चिंगारी बन
तुम्हारे कैनवस पर उतरूंगी
या शायद तुम्हारे कैनवस पर
एक रहस्यमयी लकीर बन कर
ख़ामोश तुम्हें तकती रहूंगी
या शायद सूरज की रोशनी बन
तुम्हारे रंगों में घुल जाऊंगी
या रंगों की बाँहों में बैठ
तुम्हारे कैनवस से लिपट जाऊंगी
पता नही किस तरह – कहाँ
पर तुम्हें ज़रूर मिलूंगी
या शायद एक चश्मा बन
और जिस तरह झरनों का पानी उड़ता
मैं पानी की बूँदे
तुम्हारे तन पर मलूंगी
और एक शीतलता सी बन
तुम्हारे सीने से लगूंगी....
मैं कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो कुछ भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा....
यह जिस्म मरता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है
परंतु स्मृतियों के धागे
क़ायनाती कणों के होते हैं
मैं उन कणों को चुनुंगी
धागों से लिपटूंगी
और तुम्हें फिर मिलूंगी......

- अमृता प्रीतम

मूल पंजाबी से अनुवाद – नीलम शर्मा 'अंशु'


तोमार शाथे आबार मिलन हौबे !
(बांग्ला रूपांतर)

तोमार शाथे आबार मिलन हौबे !
कोथाए, की भाबे, जानी ना
हौय तो तोमार कौल्पनार फुल्की होए
तोमार कैनभासे नामबो बा हौय
तो तोमार कैनभासे
एकटि रौहस्योमोई रेखा होए
तोमार रौंगेर मोध्ये मिशे जाबो
बा रौंगेर कोले बोशे
तोमार कैनभास के आलिंगोन कोरबो
जानी ना की भाबे – कोथाए
किंतु तोमार शाथे अबश्यो मिलौन हौबे
हौयतो एकटि झील होए
एबोंग जे भाबे झरनार जौल ओड़े
आमी जौलेर फोटा गुलो के
तोमार गाए माखाबो
आर शीतलता होए
तोमार बूके लेगे थाकबो
आमी आर किछुई जानी ना
किंतु शुधु ऐई टुकु जानी
शौमोय जा कोरबे
एई जीबोनटी आमार शाथे चोलबे
एई शोरीरेर जौखोन मृत्यु घौटे
तखौन सब किछुई शेष होए जाए
किंतु स्रीतिर शूतो गुलो
शांशारिक कौना दिए तोईरी
आमी शेई कौना गुलो के बेछे नेबो
शुतोर आलिंगोन कोरबो
आर तोमार शाथे आबार मिलन हौबे......

- अमृता प्रीतम

मूल पंजाबी से अनुवाद – नीलम शर्मा 'अंशु'


(2) 

अमृता के लिए

इस नीड़ की उम्र है अब चालीस
तुम भी उड़ने को तत्पर हो
इस नीड़ के तिनके
सदा जैसे तुम्हारे आगमन पर
तुम्हारा स्वागत करते थे
वैसे ही तुम्हारे उड़ जाने(प्रस्थान) पर भी
इस नीड़ के तिनके
तुम्हें अलविदा कहेंगे।

- इमरोज़

मूल पंजाबी से अनुवाद – नीलम शर्मा 'अंशु'

* भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता में 2005 में आयोजित अमृता जी की शोक सभा में ये दोनों कविताएं मेरे द्वारा पढ़ी गई थीं।

25 अक्तूबर 2011




दोस्तो, आप सभी को दीपोत्सव की बहुत-बहुत शुभ कामनाएं !







11 अक्तूबर 2011

हम जहां खड़े होते हैं, लाईन वहीं से शुरू होती है…………..


हम जहां खड़े होते हैं, लाईन वहीं से शुरू होती है.........





अमिताभ और रविवार : -

  1. उनका जन्म रविवार,11 अक्तूबर 1942 को हुआ।
  2. पत्न  जया बच्चन का जन्म भी रविवार 9 अप्रैल को हुआ।
  3. उनकी शादी भी रविवार 3 जून 1973 को हुई।
  4. उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म सात हिंदुस्तानी भी रविवार 16 फरवरी 1969 को साईन की।
  5. प्रेस या मीडिया को अपनी तरफ से बैन करने के बाद पहला इंटरव्यू संडे मैग्ज़ीन को दिया।


फ़िल्मों में बोले गए कुछ स्मरणीय डॉयलॉग  : -

  1. रिश्ते में तुम्हारे बाप लगते हैं, नाम है......(शहंशाह से)।
  2. हम जहां खड़े होते हैं, लाईन वहीं से शुरू होती है (कालिया से) ।
  3. तुम्हारा नाम क्या है बसंती? (शोले से) ।
  4. बचपन से सर पे अल्लाह का हाथ, और अल्लाहरक्खा हौ अपने साथ। बाजू पे 786 का है बिल्ला, 20 नंबर की बीड़ी पीत हूँ, काम करता हूं कुली का और नाम है इकबाल। (कुली से)।
  5. आज भी मैं फैंके हुए पैसे नहीं उठाता। ( दीवार से)

Uncommon गीतकार जिन्होंने उनके लिए गीत लिखे   : -        


1.  पिताश्री हरिवंश राय बच्चन ने फ़िल्म आलाप में कोई गाता मैं सो जाता और सिलसिला में रंग बरसे।

2.  डॉ. राही मासूम रज़ा ने फ़िल्म आलाप में चांद अकेला। 
3.  रवीन्द्र जैन ने फ़िल्म सौदागर में हर हसीं चीज़ का। 
4.  जाने-माने निर्देशक प्रकाश मेहरा ने नमक हलाल में के पग घुंघरू बांध और  शराबी में मंज़िलें अपनी जगहें हैं। 
5. Established Script Writer  प्रयाग राज ने फ़िल्म तूफान में Don’t Worry  और गंगा जमुना सरस्वति में डिस्को भांगड़ा।  



गायक जिन्होंने उनके लिए सिर्फ़ एक बार गाया : -

मन्ना डे ने फ़िल्म शोले, लक्ष्मीकांत ने देश प्रेमी, अनवर ने नसीब, बप्पी लहरी ने गिरफ्तार, 
मनहर ने अभिमान में।

विविध भारती पर फौजी भाईयों के लिए प्रोग्राम पेश करते हुए अमिताभ बच्चन ने कहा था – फिल्मी  कलाकार आसमां उड़ती पतंग की तरह है, जो हवा का रुख मिल गया तो खूब उड़ती है और किसी पतंग ने काट दिया तो पता ही नहीं चलता कि कहां गई। आज आप मुझे इतना प्यार करते हैं और कल को कोई और कलाकर आ गकया तो आप मेरा नाम तक लेना नापसंद करेंगे।’ दोस्तो, ये तब की बात है जब वे सिर्फ़ अमिताभ बच्चन थे, बिग बी नहीं बने थे। आज ऐसी बात नहीं है, आज वे भारत में ही International Icon हैं।

पसंदीदा सर्वश्रेष्ठ फिल्में    : -

अनुपमा, चारूलता, गंगा जमुना, कागज़ के फूल और Gone with the wind.

Angry Young Man अमिताभ बच्चन की आनंद, चुपके चुपके, मिली, अभिमान, सिलसिला, मंज़िल, आलाप, संजोग इन 8 फ़िल्मों में ढिशुम-ढिशुम नहीं थी।

अमिताभ बच्चन के लोकप्रिय और सफल होने के बाद उनके जीवन के एक घटना ने ये साबित कर दिया कि इस देश में अमिताभ की लोकप्रियता कितने चरम पर है। शनिवार 24 जुलाई 1982 को बंगलौर में मनमोहन देसाई की फ़िल्म ‘कुली’ में एक नए खलनायक पुनीत इस्सर के साथ स्टंट सीन में वे घायल हो गए। पेट में चोट लगी थी। मुंबई से बुलाए गए उनके फैमिली डॉक्टर शाह भी एक्स रे देखने के बावजूद चोट की गंभीरता को समझ नहीं पाए। हालत ज़्यादा ख़राब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। रोग किसी की समझ में नहीं आ रहा था। संयोग ही कहें कि विशिष्ट यूरोलोजिस्ट डॉ. H S Bhatt बंगलौर आए हुए थे। उन्होंने पाया कि आंत फट गई थी। तीन घंटों तक ऑप्रेशन किया गया। ऑप्रेशन के बाद 24 घंटे इंतज़ार करना था। इस दौरान पूरा देश सांस रोके रहा। फिर उन्हें मुंबई लाकर ब्रीच कैंडी में दूसरा ऑप्रेशन किया गया। देश के लाखों लोगों ने मन्नतें मांगीं, उपवास रखे, प्रार्थनाएं कीं।

अमिताभ को पहली बार महसूस हुआ कि वे लोगों के कितने चहेते हैं। ‘जंजीर’ की सफलता जहां उन्हें रोमांचित करती है वहीं ‘कुली’ की घटना याद आते ही उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वे कहते हैं उस घटना को याद करता हूं तो मुझे डर लगने लगता है। जिन लोगों ने मेरे लिए प्रार्थना की, दुआएं मांगी, मैं उन सबका कर्ज़दार हूं और ये कर्ज़ मैं कभी अदा नहीं कर सकता। इस अहसास को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। 

अमिताभ यानी हिन्दी सिनेमा की महानायक। फ़िल्मी पर्दे पर ही छोटे पर्दे पर भी। दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली ये इमेज एक दिन में नहीं बनी। इस सफ़र में उजाले के बाद अंधेरे भी आए पर नायक रुका नहीं, ठहरा नहीं। हर काम के प्रति उनका समर्पण उन्हें महानायक बनाता गया। उन्होंने अपनी एंग्री यंगमैन की छवि से हिन्दी सिनेमा के परंपरागत नायकों के फ्रेम को तोड़ा था, वैसे ही क़रीब चार दशकों के बाद वे फिर से छवियों के सारे मानकों को तोड़ रहे हैं। वे हीरो भी है, पिता भी है। दोनों भूमकाओं में सर्वश्रेष्ठ। पर्दे पर ही नहीं पर्दे के बाहर भी। घर में ही नहीं, घर से दूर छोटे पर्दे के सेट पर भी। अमिताभ आज मह़ज़ एक नाम नहीं बल्कि एक विचार, एक परिघटना में तब्दील हो चुके हैं। हर बुरे वक्त में खुद को साबित कर देने की खूबी ने ही अमिताभ बच्चन को विश्वसनीयता का एक पर्याय बना दिया है।

क्या कहते हैं सह - कलाकार : - 

अनुपम खेर - अमिताभ बच्चन तो मेरे ख़याल से एक अजूबा हैं, वे एक फेनोमेना हैं। अपने जीवनकाल में ही लेजेंड बन चुके वे हिन्दी फ़िल्मों के अल्टीमेट स्टार है। बच्चन साहब के लिए ये विशेषण थोड़े कम पड़ जाते हैं। डिक्शनरी से कुछ और विशेषण खोज निकालने होंगे कहते हैं अनुपम खेऱ। अमित जी में ग़ज़ब की गर्मजोशी है। वे सिर्फ़ कद से ही लंबे नहीं हैं। हुनर और पर्सनैलिटी से भी लंबे हैं। उनके आगे हर आदमी बौना महसूस करता है। उनकी इमेज लार्जर दैन लाइफ है। उन्हें ऐसी फ़िल्में मिली और ऐसे करेक्टर मिले कि उनका व्यक्तित्व लार्जर दैन लाइफ हो गया।  वे पर्दे पर आएं या जीवन में, आपका ध्यान खींचते हैं। हज़ारों, लाखों की भीड़ में भी वे केंद्र बन जाते हैं और वहां मौजूद सारे लोग उनकी तरफ आकर्षित हो जाए हैं। दर्शकों को लगता है कि अमिताभ उनके बीच के व्यक्ति हैं। किसी भी कलाकार के लिए ये बड़ी उपलब्धि होती है।


आर. बाल्की : -  फ़िल्म पा के निर्देशक आर. बाल्की की। वे कहते हैं कि मैं चाहता था कि पा का औरो का किरदार अमित जी निभाए लेकिन उस किरदार पर किसी भी तरह से बिग बी की छवि हावी न होने पाए। एक शब्द में कहूं तो मैं अमिताभ बच्चन में से अमिताभ बच्चन को ही बाहर निकालना चाहता था। मैंने जब उनसे बात की तो वे कुछ समय के लिए चुप हो गए फिर कहा कि मुझे ऐसे रिदार से जुड़ना पसंद है, जो मेरे स्टारडम को संतुष्टि न देकर एक्टर के रूप में मुझे चुनौती दे। इस मुकाम पर भी उनमें नवोदित कलाकार की तरह अभिनय के प्रति जुनून और जज्बा बरक़रार है। उन्होंने किरदार को पूरी तरह से समझा और मुझे विश्वास दिलाया कि औरो में कहीं से भी अमिताभ बच्चन की छवि नज़र नहीं आएगी। अगले दिन उन्होंने मेक-अप किया, कुछ सीन शूट किए। तभी सेट पर अभिषेक आए। अमित जी सामने ही थे लेकिन अभिषेक उन्हें पहचान नहीं पाए। थो़डी देर बाद उन्होंने पूछा, पापा कहां है। जब हमने बताया कि एक बच्चे की तरह ऩज़र आ रहा शख्स कोई और नहीं बल्कि अमित जी ही है तो सुनकर अभिषेक के आश्चर्य और अमित जी की खुशी का ठिकाना न रहा। अमित जी पूरी तरह से डायरेक्टेड ऐक्टर नहीं बल्कि एक इंटेलीजेंट एक्टर हैं।   

 शर्मिला टैगोर अमित के साथ काम करना मुझे हमेशा ही अच्छा लगा है। कहती हैं शर्मिला टैगोर। लगभग 27 साल बाद हम दोनों ने एक साथ काम किया विरुद्ध में। अमित में मैंने कोई बदलाव नहीं देखा सिवाए इसके कि अब वे सफेद दाढ़ी रखते हैं। अनुशासन को मैं अमित के ऐसे गुणों में मानती हूं जिसने उनको शिखर पर पहुंचाया। मैंने बहुत बड़े-बड़े कलाकारों के साथ काम किया है लेकिन मैं कह सकती हूं कि अमित जैसा अनुशासित कलाकार बहुत कम हैं। हिन्दी फ़िल्मों में सफलता का इतना लंबा दौर देखने वाले अमित को उनकी मेहनत का फल मिला है और वे इसके हकदार रहे हैं।

वहीदा रहमान -  अमित को मैं आज भी कभी देखती हूं तो मुझे उस दिन की याद आ जाती है जब रेशमा और शेरा के सिलसिले में मुझे सुनील दत्त में पहली बार एक दुबले-पतले नौजवान से मिलवाया था। मुझे बताया गया था कि वो फ़िल्म में गूंगे का कैरेक्टर करेगा। मैंने जब उस लड़के की आवाज़ सुनी तो सुनील दत्त से कहा कि इसकी आवाज़ बहुत अच्छी है। वे मेरी बात से सहमत थे लेकिन कैरेक्टर की मांग के अनुसार उन्हें रोल दिया गया था।  

अमित को मैं गरिमामय कलाकारों में मानती हूं और उनका सबसे बड़ा गुण मानती हूं फ़िल्मों की नई पीढ़ी के साथ उन्होंने बहुत अच्छा ताल-मेल बिठाया है। दूसरे लोगों की तरह उनके जीवन में भी उतार-चढ़ाव रहे हैं लेकिन उन्होंने संघर्ष किया और situations पर विजय पाई। यही उनके अमिताभ बच्चन होने का मतलब है जिसे हम सबसे बड़े सितारे के तौर पर जानते हैं। कहती हैं वहीदा रहमान।

अभिषेक बच्चन 
अपनी उपलब्धियों का श्रेय उन्हें देते हैं। वे कहते हैं मैं आज जो कुछ भी हूं पापा की वजह से हूं। मेरी इस कामयाबी में उनका योगदान है।  वे साफ़ कहते हैं कि मेरे पिता पॉपुलर स्टार हैं। अगर लोगों को लगता है कि उनकी वजह से मुझे फायदा हुआ है तो ये मेरे लिए गर्व की बात है. अभिषेख हमेशा कहते रहे हैं कि पापा की व्यवहार दोस्तों जैसा रहा है। मेरे काम को उन्होंने बारीकी से जांचा है। कमियां बताकर सुधार की सलाह दी है तो कई बार तारीफ भी की। 



उनकी सहधर्मिणी जया बच्चन कहती हैं कि  मेरे नज़र में वे एक असाधारण अभिनेता और कलाकार हैं। उनकी किस्मत ने उन्हें सुपरस्टार बनाया। मुझे लगता है कि उनकी जो अभिनय क्षमता है किसी ने भी उसका अभी परिपूर्णरूप से इस्तेमाल नहीं किया। उनका श्रेष्ठतम अभिनय तभी सामने आएगा जब उनके जैसा ही कोई निर्देशक उनके साथ काम करेगा। साथ ही वे ये भी कहती हैं कि अमित जी को सरप्राइज देना बहुत पसंद है। 


अमिताभ यानी हिन्दी सिनेमा की महानायक। फ़िल्मी पर्दे पर ही छोटे पर्दे पर भी। दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली ये इमेज एक दिन में नहीं बनी। इस सफ़र में उजाले के बाद अंधेरे भी आए पर नायक रुका नहीं, ठहरा नहीं। हर काम के प्रति उनका समर्पण उन्हें महानायक बनाता गया। उन्होंने अपनी एंग्री यंगमैन की छवि से हिन्दी सिनेमा के परंपरागत नायकों के फ्रेम को तोड़ा था, वैसे ही क़रीब चार दशकों के बाद वे फिर से छवियों के सारे मानकों को तोड़ रहे हैं। घर से दूर छोटे पर्दे के सेट पर भी। अमिताभ आज मह़ज़ एक नाम नहीं बल्कि एक विचार, एक परिघटना में तब्दील हो चुके हैं। हर बुरे वक्त में खुद को साबित कर देने की खूबी ने ही अमिताभ बच्चन को विश्वसनीयता का एक पर्याय बना दिया है। 

जून 2000 में वे पहले ऐसे एशियन बने जिसे लंदन के Prestigious मैडम तुषाद वैक्स म्युज़ियम में मोम के statue के रूप में Immortalise किय़ा गया। 2009 में दूसरे statue New York और Hong Kong में भी स्थापित किए गए। ये म्यु़ज़ियम दो सौ साल पुराना है। अब तक वहां विशव की लगभग पांच सौ से अधिक नामी-गिरामी Personalities के मोम के स्टेच्यु बनाए गए हैं। हर साल 15 नई हस्तियां जुड़ जाती हैं। महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव के बाद अमिताभ इस म्युज़ियम में पहुंचे पांचवें भारतीय हैं। अमिताभ बच्चन के अनुरोध पर 2001 में ये स्टैच्यु भारत लाया गया था ताकि उनके माता-पिता भी देख सकें। इसके बाद ऐशवर्या, रितिक रौशन, सलमान खान, शाहरुख खान, सचिन तेंदुलकर जैसे नाम भी शामिल किए गए।

वे हमेशा अपने बाबूजी को कोट करते हैं कि बाबूजी के जीवन-दर्शन ने मुझे ज़िंदगी का फलसफ़ा सिखाया। वे कहते थे कि मन का हो तो अच्छा और न हो तो और भी अच्छा। या फिर ये कि बीत गई सो बात गई। वे कहते हैं कि ज़िंदगी के पर पथ पर बाबूजी की सीख काम आती है। ख़ासतौर से सहनशीलता और आत्मबल रखना उन्हीं से सीखा है। बेरोजगारी की स्थिति में जब नौकरी नही मिल रही थी तो दोस्तों के साथ मिलकर उन्होंने तय किया कि इस सब में हमारे माता पिता का ही दोष है। एक दिन उन्होंने अपने पिताजी से कहा कि आपने मुझे जन्म ही क्यों दिया। उस वक्त तो पिता चुप रह गए। अगले दिन सुबह मार्निंग वॉक पर जाते वक्त एक पुर्जा थमा दिया कि जिसका जिस्ट यही था कि बेटा, मेरे पिताजी ने भी मुझसे पूछ कर मुझे जन्म नहीं दिया था और न ही उनके पिताजी ने उनसे पूछ कर। तो तुम ऐसा करना कि जो ग़लती हम सबने की, वो तुम मत करना, तुम अपने बेटे को उससे पूछ कर ही जन्म देना... ये सुनने के बाद मुझे अहसास हुआ कि मैं ग़लत बात के लिए बाबूजी को दोष दे रहा था। कहते हैं अमिताभ।  

आज वे अपना 69वां जन्मदिन मना रहे हैं यानी जीवन के 69 पायदानों का सफ़र पूरा कर 70वें में पदार्पण करेंगें।  उन्हें जन्मदिन की ढेरों शुभ कामनाएं। ईश्वर से प्रार्थना है कि वो उन्हें दीर्घायु करें स्वास्थ्य और कुशल रखें ताकि वे अपने प्रशंसकों को और भी खश रख सकेंष


संयोजन व  प्रस्तुति - नीलम अंशु