आज हर दिल महबूब शायरा और लेखिका अमृता प्रीतम जी
की पुण्यतिथि के मौके पर उन्हें याद करते हुए.....
(1)
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी !
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी !
कहाँ, किस तरह, पता नहीं
शायद तुम्हारी कल्पना की चिंगारी बन
तुम्हारे कैनवस पर उतरूंगी
या शायद तुम्हारे कैनवस पर
एक रहस्यमयी लकीर बन कर
ख़ामोश तुम्हें तकती रहूंगी
या शायद सूरज की रोशनी बन
तुम्हारे रंगों में घुल जाऊंगी
या रंगों की बाँहों में बैठ
तुम्हारे कैनवस से लिपट जाऊंगी
पता नही किस तरह – कहाँ
पर तुम्हें ज़रूर मिलूंगी
या शायद एक चश्मा बन
और जिस तरह झरनों का पानी उड़ता
मैं पानी की बूँदे
तुम्हारे तन पर मलूंगी
और एक शीतलता सी बन
तुम्हारे सीने से लगूंगी....
मैं कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो कुछ भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा....
यह जिस्म मरता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है
परंतु स्मृतियों के धागे
क़ायनाती कणों के होते हैं
मैं उन कणों को चुनुंगी
धागों से लिपटूंगी
और तुम्हें फिर मिलूंगी......
- अमृता प्रीतम
मूल पंजाबी से अनुवाद – नीलम शर्मा 'अंशु'
तोमार शाथे आबार मिलन हौबे !
(बांग्ला रूपांतर)
तोमार शाथे आबार मिलन हौबे !
कोथाए, की भाबे, जानी ना
हौय तो तोमार कौल्पनार फुल्की होए
तोमार कैनभासे नामबो बा हौय
तो तोमार कैनभासे
एकटि रौहस्योमोई रेखा होए
तोमार रौंगेर मोध्ये मिशे जाबो
बा रौंगेर कोले बोशे
तोमार कैनभास के आलिंगोन कोरबो
जानी ना की भाबे – कोथाए
किंतु तोमार शाथे अबश्यो मिलौन हौबे
हौयतो एकटि झील होए
एबोंग जे भाबे झरनार जौल ओड़े
आमी जौलेर फोटा गुलो के
तोमार गाए माखाबो
आर शीतलता होए
तोमार बूके लेगे थाकबो
आमी आर किछुई जानी ना
किंतु शुधु ऐई टुकु जानी
शौमोय जा कोरबे
एई जीबोनटी आमार शाथे चोलबे
एई शोरीरेर जौखोन मृत्यु घौटे
तखौन सब किछुई शेष होए जाए
किंतु स्रीतिर शूतो गुलो
शांशारिक कौना दिए तोईरी
आमी शेई कौना गुलो के बेछे नेबो
शुतोर आलिंगोन कोरबो
आर तोमार शाथे आबार मिलन हौबे......
- अमृता प्रीतम
मूल पंजाबी से अनुवाद – नीलम शर्मा 'अंशु'
(2)
अमृता के लिए
इस नीड़ की उम्र है अब चालीस
तुम भी उड़ने को तत्पर हो
इस नीड़ के तिनके
सदा जैसे तुम्हारे आगमन पर
तुम्हारा स्वागत करते थे
वैसे ही तुम्हारे उड़ जाने(प्रस्थान) पर भी
इस नीड़ के तिनके
तुम्हें अलविदा कहेंगे।
- इमरोज़
मूल पंजाबी से अनुवाद – नीलम शर्मा 'अंशु'
* भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता में 2005 में आयोजित अमृता जी की शोक सभा में ये दोनों कविताएं मेरे द्वारा पढ़ी गई थीं।
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