आज राष्ट्रीय ध्वज दिवस के अवसर पर समग्र देशवासियों को बधाई! आज ही के दिन 1947 में संविधान सभा द्वारा इसे ADOPT किया गया था।
आदमी मुसाफ़िर है, आता है और जाता है,
आते-जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है।
21 जुलाई, आज ही के दिन 1920 में अविभाजित हिन्दुस्तान के रावलपिंडी (अब पाकिस्तान में) जन्म हुआ था गीतकार, शायर आनंद बख्शी साहब का। गायक बनने का सपना लेकर बंबई आए थे, लेकिन क़िस्मत ने उन्हें गीतकार के रूप में सफलता दिलाई। इस सफलता का पहला स्वाद चखा उन्होंने सुनील दत्त और नूतन अभिनीत फिल्म मिलन से।
चार बार उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कारों से नवाज़ा गया।
चार बार उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कारों से नवाज़ा गया।
पहली बार - 1977 फिल्म अपनापन - गीत आदमी मुसाफ़िर है।
दूसरी बार - 1981 में फिल्म इक दूजे के लिए - गीत तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन ।
तीसरी बार - 1995 में दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे - गीत तुझे देखा तो ये जाना सनम। चौथी बार - 1999 में फिल्म ताल - गीत इश्क बिना क्या जीना यारो ।
गायक बनने का ख़्वाब संजोए वे बंबई आए थे, बन गए गीतकार, परंतु उन्होंने कुछ गीतों में अपनी आवाज़ भी दी जैसे - फ़िल्म चरस के गीत - के आजा तेरी याद आई, मोम की गुड़िया में - बागों में बहार आई /सुनो बातों-बातों में/मैं ढूँढ रहा था, फ़िल्म शोले की क़व्वाली(जो कि फ़िल्म में शामिल नहीं की गई) के चाँद सा कोई चेहरा, फ़िल्म बालिका वधु - जगत मुसाफ़िर खाना, फ़िल्म खान दोस्त - हर साल हमने तो सुना चर्चा इसी पैगाम का, फ़िल्म प्रेम योग - जिसे प्रेम का रंग चढ़ा हो, उसपे कोई भी रंग।
ऐसे में क्या दिल बरबस ही नहीं कह उठता कि
दिल क्या करे जब किसी को
किसी से प्यार हो जाए....
या फिर आदमी मुसाफ़िर है, आता है और जाता है,
आते-जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है।
आज उनके जन्म दिन के अवसर पर हम उन्हें यादों के श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।
प्रस्तुति - नीलम 'अंशु '