31 जुलाई,
तीन अज़ीम शख्सीयतों
को याद करते हुए......
आज भारत के महान सपूत राम मुहम्मद आज़ाद उर्फ़ शहीद ऊधम सिंह का 70 वां शहादत दिवस है। आज ही के दिन 1940 में उन्हें उनकी शपथ ' खून का बदला खून' यानि जलियांवाले कांड में गोलीबारी के लिए ज़िम्मेदार जनरल डायर के 13 मार्च 1940 को क़त्ल की सज़ा स्वरूप फाँसी दे दी गई। और इस जांबाज युवक ने अपने देश की ख़ातिर यह कहते हुए फाँसी के फंदे को हँसते-हँसते गले से लगा लिया -
क्या हुआ गर मिट गए अपने वतन के वास्ते,
बुलबुलें कुरबान होती हैं चमन के वास्ते।
और आज उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 130 वीं जयंती तथा मुहम्मद रफ़ी साहब की 30 वीं पुण्यतिथि है। 30 की संख्या दोनों के बीच कॉमन आ रही है, एक की 130 वीं जयंती और दूसरे की 30 वीं पुण्यतिथि। दोनों के फ़न में भी एक चीज़ कॉमन है, वह है प्रेमचंद जी के उपन्यास पर गोदान पर फ़िल्म और उस फ़िल्म में रफ़ी साहब का पार्श्व गायन। गीत याद आ रहा है, 'पिपरा के पतवा सरीखे डोले मनवा, के जियरा में उठत हिलोर।' 1964 में बनी फ़िल्म गोदान को बेस्ट मोशन पिक्चर, बेस्ट सॉन्ग आवॉर्ड, बेस्ट डांस अवॉर्ड, बेस्ट डांस डायरेक्शन के लिए फ़िल्म जर्नलिस्ट अवॉर्ड के साथ-साथ डिप्लोमा ऑफ ऑनर फ्रॉम लोकार्ना इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टीवल अवॉर्ड भी प्रदान किया गया।
इन अज़ीम शख्सीयतों को भावभीनी श्रद्धांजलि ।
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