20 जुलाई.....
(1) सबसे पहले बात करते हैं 20 जुलाई 1929 को पश्चिमी पंजाब के सियालकोट में जन्मे राजेन्द्र कुमार तुली उर्फ़ जुबली कुमार की । यह दुखद ही है कि उनके जन्म दिन से पहले उनकी पुण्यतिथि आती है 12 जुलाई को। ख़ैर, केदार शर्मा निर्देशित जोगन राजेन्द्र कुमार की डेब्यू फ़िल्म रही। उसके बाद उन्हें major ब्रेक मिला फ़िल्म वचन के ज़रिए, जिसमें उन्होंने गीता बाली के भाई का किरदार निभाया था। रोमांटिक लीडिंग रोल वाली उनकी पहली सुपरहिट फ़िल्म थी – गूंज उठी शहनाई। उनकी फ़िल्में तो नहीं गिनवाऊंगी लेकिन मदर इंडिया और संगम तो उल्लेखनीय हैं ही। उसके बाद तो एक वक़्त ऐसा आया कि उनकी हर फ़िल्म सिल्वर जुबली मनाती थी, इसी कारण उन्हें जुबली कुमार कहा जाने लगा। हिन्दी फ़िल्मों के साथ-साथ उन्होंने कई पंजाबी फ़िल्में भी की।
बतौर निर्देशक-निर्माता उनकी पहली फ़िल्म थी - लव स्टोरी, जिसमें उन्होंने अपने सुपुत्र कुमार गौरव को लॉंन्च किया। साथ ही उन्होंने फूल, जुर्रत, नाम, लवर्स आदि फ़िल्मों का निर्माण भी किया। 1969 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्होंने Honorary Magistrate के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं।
हिन्दी फ़िल्म क़ानून और गुजराती फ़िल्म मेंहदी रंग लाग्यो के लिए उन्हें पं. नेहरू के कर-कमलों द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 12 जुलाई 1999 को कैंसर के कारण उनका निधन हो गया।
जन्म दिन के मौक़े पर उन्हें याद करते हुए
हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
(2) 20 जुलाई 1950 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में जन्म हुआ था, नसीर-उ-द्दीन शाह का। अजमेर तथा नैनीताल के सेंट जोसेफ कॉलेज से शिक्षा के बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की। फिर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया। मुख्यधारा तथा समानांतर हिन्दी सिनेमा दोनों में ही वे सफल रहे। बहुत सी अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्मों में भी काम किया। निशांत, आक्रोश, स्पर्श, मिर्च मसाला, अलबर्ट पिंटों को गुस्सा क्यों आता है, त्रिकाल, जुनून, मंडी, मोहन जोशी हाज़िर हो, अर्द्ध सत्य, कथा आदि उनकी लोकप्रिय समानांतर फ़िल्में रहीं तथा वहीं दूसरी ओर मासूम, कर्मा, इजाज़त, जलवा, हीरो हीरालाल, गुलामी, त्रिदेव, विश्वात्मा, मोहरा, सरफ़रोश, बाजा़र, उमराव जान, हे राम, इकबाल, अ वेनस्डे, मॉनसून वेडिंग, इश्किया, परज़ानिया, खुदा के लिए, राजनीति, दस कहानियां, कृष, ओंकारा, फ़िराक़ आदि मुख्य धारा की फि़ल्मों के साथ-साथ मिर्ज़ा ग़ालिब तथा भारत एक खोज धारावाहिकों के भी वे हिस्सा बने। उन्होंने लवेन्द्र कुमार, इस्मत चुगताई, मंटो लिखित नाटकों का निर्देशन भी किया। 2006 में फ़िल्म निर्देशन में भी हाथ आज़माया और यूं होता तो क्या होता का निर्देशन किया जिसकी स्टारकास्ट में शामिल थे उनके साहबज़ादे इमाद शाह, आयशा टाकिया, कोंकना सेनशर्मा, परेश रावल तथा इरफ़ान खान।
1980 में फ़िल्म काल के लिए उन्हें सर्वोत्कृष्ट अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार, 1981 में आक्रोश, 1982 में चक्र, 1984 में मासूम, 1985 में पार तथा अ वेनस्डे के लिए उन्हें फ़िल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता
के अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1987 में पद्मश्री तथा 2003 में पद्म भूषण पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया। फ़िल्म इक़बाल के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता के राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया।हम उनकी दीर्घायू तथा लंबी फ़िल्मी पारी की
कामना करते हैं।
प्रस्तुति : नीलम शर्मा 'अंशु'
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