सुस्वागतम्

समवेत स्वर पर पधारने हेतु आपका तह-ए-दिल से आभार। आपकी उपस्थिति हमारा उत्साहवर्धन करती है, कृपया अपनी बहुमूल्य टिप्पणी अवश्य दर्ज़ करें। -- नीलम शर्मा 'अंशु

30 सितंबर 2010

Nostalgic visuals of our childhood


 दोस्तो, 15  सितंबर को दिल्ली दूरदर्शन ने अपनी स्थापना के इक्यावन वर्ष पूरे किए। 1959  में इसी दिन दूरदर्शन की स्थापना की गई थी। कल 30 सितंबर को सचिन कालेकर जी की बहुत ही रोचक मेल मिली, जो कि प्रासांगिक है। उसे सबके साथ शेयर करना चाहती हूँ ।


If there was Ctrl+Z in life.........
Nostalgic memories of those 
'good old days' – 
world has changed and we also 
changed for the world !!! 

Are you missing those days? 

Sometimes I do 



Doordarshan Logo 

Doordarshan' s Screensaver 



Malgudi Days 



Dekh Bhai Dekh 



Mile Sur Mera Tumhara 



Turning Point 



Bharath Ek Khoj 



Alif Laila 



Byomkesh Bakshi 



Tehkikaat 



He Man 



Salma Sultana DD News Reader 


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Vicco turmeric,
Nahin cosmetic
Vicco turmeric ayurvedic cream 



Washing powder Nirma, 

Washing powder Nirma
Doodh si safedi, Nirma se aayi
Rangeen kapde bhi khil khil jaaye
 



I'm a 
Complan Boy(Shahid Kapoor) and
I'm a Complan Girl (Ayesha Takia) 







Then were 'Mungerilal ke hasin sapane' and 'karamchand' ...'Vikram Betal', etc.
* How did one survive growing up in the  
80's and 90's?
We had no seatbelts, no airbags..
 


Cycling was like a breath of fresh air… 


No safety helmets, knee pads or elbow pads, with plenty of cardboards between spokes to make it sound like a motorbike… 


When thirsty we only drank tap water, bottled water was still a mystery… 


We kept busy collecting bits & pieces so we could build all sort of things … and we were fearless on our bicycles even when the brakes failed going downhill… 


*  We were showing off how tough we are, by how high we could climb trees & then jumping down….It was great fun…. 

We could stay out to play for hours, as long as we got back before dark, in time for dinner… 

We walked to school, or sometimes we even rode our bicycle. 

We had no mobile phones, but we always managed to find each other…. How? 

We lost teeth, broke arms & legs, we got cuts and bruises and bloody noses…. nobody complained as we had so much fun, it wasn't anybody's fault, only ours 

We ate everything in sight, cakes, bread, chocolate, ice-cream, sweet sugary drinks, fruits..yet, we stayed skinny by fooling around. 
 
*  And if one of us was lucky to find a 1 litre coca cola bottle we all had a swig from it & guess what? Nobody picked up any germs...

We did not have Play Stations, MP3, Nintendo's, I-Pods, Video games, 99 Cable TV channels, DVD's, Home Cinema, Home Computers, Laptops, Chat-rooms, Internet, etc ... 

BUT, we had REAL FRIENDS!!!! 

*  We called on friends to come out to play, never rang the doorbell, just went around the backdoor… 

*  We played with sticks and stones, played cowboys and Indians, doctors and nurses, hide and seek, soccer games, over and over again… 

*  When we failed our exams we were given a second chance by simply repeating the same grade…without visiting psychiatrists, psychologists or counselors… 


Such were the days… 

*  We had freedom, success, disappointments and responsibilities. .. 

*  Most of all, we learned to respect others… 

Are YOU from that generation?? If that's the case, email this to all your friends from the same era… 

May be this message will help them forget the stress that surrounds us these days….and just for a few moments puts a smile to their faces as they remember what life was really like in the good old days……


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27 सितंबर 2010

सुर साम्राज्ञी लता जी के जन्म दिन पर विशेष !




 वह शख्सीयत नहीं है जो हर सदी या दो सदियों में हुआ 
करती है।यह बड़े भाग्य की बात है कि हमारी हस्ती उनके साथ 
बनी हुई है। 12 सुरों पर उसका नियंत्रण मुग्ध कर देने वाला 
रहा है। मेरी बहन है इस, नाते तारीफ़ नहीं कर रहा हूँ मैं।  
परंतु नहीं, महाभारत में एक ही कृष्ण हुए हैं। उसी तरह भारत
में सिर्फ़ एक ही लता हुई हैं। 
कहते हैं -  भाई हृदयनाथ मंगेशकर।


 सदियों में पैदा होने वाली आवाज़ और गुज़री सदी की 
  बिलाशक श्रेष्ठतम आवाज़ है जिससे ये सदी भी धन्य हुई है।
  पड़ोसी राष्ट्र के मेरे एक मित्र कहते हैं कि हमारे मुल्क़ में वह
  सब है जो भारत में आप लोगों के पास है, बस नहीं हैं तो 
  सिर्फ़ ताजमहल और लता मंगेशकर। अमिताभ बच्चन।

 बकौल जगजीत सिंह  बीसवीं शताब्दी में सिर्फ़ तीन चीज़ें 
याद की जाएंगी  लता मंगेशकर का जन्म, मनुष्य का चंद्रमा
की धरती पर क़दम रखना और बर्लिन की दीवार टूटना।


 बहन आशा भोंसले के अनुसार 
जब बड़ी गाती है तो लगता है कि मंदिर की घंटियां बज उठी 
हों। मैं तो बचपन से उस के साथ रही हूँ। क्या कहूँ स्वर्ग से 
अपदस्थ अप्सरा है जिसे शापवश स्वर्ग से धरती पर फेंक दिया
गया है लेकिन शाप देते हुए देवगण शायद उसकी दिव्य आवाज़
छीनना भूल गए हैं। और रास्ता भटक वह ग़लती से हमारे बीच 
आ गई है। उसकी आवाज़ की मिठास, उसके उच्चारण, फ़िर चाहे
किसी भी भाषा में गा रही हो सुनते ही बनते हैं।




 जिस तरह फूल की खुशबू का कोई रंग नहीं होता, वह 
महज़ खुशबू होती है, जिस तरह बहते हुए पानी के झरने
या ठंडी हवाओं का कोई घर, देश नहीं होता, जिस तरह 
उभरते हुए सूरज की किरणों या मासूम बच्चे की मुस्कराहट
का कोई भेदभाव नहीं होता वैसे ही लता मंगेशकर की आवाज़
कुदरत की तहलीक का करिश्मा है। कहते हैं दिलीप कुमार।


० बकौल जावेद अख़्तर,- 
पृथ्वी पर एक सूर्य हैएक चंद्रमा और एक लता।



० अगर ताजमहल दुनिया का सातवां आश्चर्य है तो लता आठवां।
  कहना है उस्ताद अमज़द अली ख़ाँ का ।



० लता जी के गाए गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ को बहुत
 शोहरत मिली लेकिन उसके गीतकार को लोग भूल से गए हैं।
 इस गीत को लता के नाम से जाना जाता है लेकिन गीतकार 
पंडित प्रदीप का कोई ज़िक्र भी नहीं करता। कहा यह भी जाता
 है कि इसे पहले आशा भोंसले गाने वाली थीं , फ़िर बाद में
 दोनों बहनों द्वारा गाया जाना तय हुआ लेकिन यह बाद में 
लता जी की झोली में चला गया।


कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि देश विभाजन के 
परिणामस्वरूप नूरजहाँ अगर पाकिस्तान न चली गई
 होतीं तो शायद लता मंगेशकर का सफ़र इतना
 आसां नहीं होता। याद कीजिए उनके शुरुआती दौर
 के गीतों का अंदाज़ बिलकुल वैसा ही था।

ऐसे में हम आज के दिन उनके दीर्घायु होने की कामना
करते हुए यही कहेंगें कि तुम जीओ हज़ारों साल ...... 
और इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि


 न भूतो न भविष्यति
स्वर्ग की अपदस्थ अप्सरा
राष्ट्र की आवाज़
कोकिल कंठी
स्वर किन्नरी
गंधर्व स्वर
संगीत साम्राज्ञी
जीवंत किंवदंती ! 

उन्हें चाहे ऐसी कितनी ही उपमाएं
अलंकरण, संबोधन या 
उपाधियां दी जाएं

सत्य यही है कि वे लता मंगेशकर हैं।

                    <>










26 सितंबर 2010

28 सितंबर शहीद-ए-आज़म के जन्मदिन पर विशेष !




  








28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा (अब पाकिस्तान) में जन्में थे भगत सिंह। मज़े की बात यह है कि अब यह स्थान पाकिस्तान में है लेकिन पंजाब के नवांशहर जिले में उनके पैतृक गाँव खटकड़कलां के पास यानी नवांशहर जालंधर मार्ग पर भी बंगा शहर है।

नवंबर 2008  को अपनी पंजाब फेरी के दौरान मैंने तय किया कि इस बार खटकड़कलां अवश्य जाना है। और, एक दिन सुबह जा पहुंचे हम खटकड़कलां, शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के गाँव। नवांशहर-जालंधर मार्ग पर स्थित है यह गांव। वैसे तो पंजाब के गाँव सिर्फ़ कहने भर को गाँव कहलाते हैं लेकिन होते हैं सभी सुविधाओं से संपन्न। नवांशहर से हमने ओंकार बस सर्विस की बस ली और कंडक्टर से गुज़ारिश की कि भई खटकड़कलां उतार देना। (ज़्यादातर लंबे रूट की बसें वहाँ नहीं रुकती या तो अपने वाहन से जाया जाए या टैंपों से)। भाई, अपने काम की व्यस्तता के कारण हमारे साथ नहीं जा पाया परिणामस्वरूप अपने वाहन की बजाए हमें बस का सहारा लेना पड़ा।

   कहते हैं न जब कोई चीज़ आसानी से उपलब्ध हो तो हम उसकी क़द्र नहीं करते। हां1980-86 तक पंजाब प्रवास के दौरान हज़ारों बार उस रूट से सफ़र किया क्योंकि मौसी या बुआ के घर जालंधर या फगवाड़ा जाते वक्त वह रास्ते में पड़ता है। हमारे अपने गाँव से नवांशहर छह कि.मी. है और नवांशहर से  लगभग 13-14 कि.मी. का फासला होगा। उस वक्त हम छोटे थे, इसलिए उतनी समझ भी नहीं थी, जबकि मेरी मम्मी का ननिहाल उसी गाँव में है (अब कोई नहीं रहता)। लेकिन अब जब कलकत्ते में रहकर पत्रकारिता से जुड़ाव हुआ तो सोचा कि इस बार ज़रूर ख़टकड़कलां होकर आएंगे। मेरे साथ मम्मी और छोटे भाई की पत्नी टीना भी थी। मुख्य सड़क पर उतर कर पक्की सड़क से हम पैदल ही चलते चले। क्या नज़ारा था। बीचो-बीच कंकरीट की सड़क और दोनों तरफ फसलों से लहलहाते खेत। खेतों में सुनहरी धान लहलहा रही थी और कहीं गन्ने झूम रहे थे। यूं तो घरों में रखे अनाज को कीड़ा लग जाता है लेकिन मैं उस वक्त खेत से धान की दो बालियां तोड़ कर लाई थी और उन्हें बड़े जतन से अपनी डायरी में सहेज कर कोलकाता ले कर आई। अब तब से मेरे कमरे की दीवार पर झूल रही हैं ज्यों की त्यों। जब हम पैदल चले जा रहे थे तो अचानक टीना ने पूछा, दीदी हम यहाँ क्यों  जा रहे हैं। सच कहूं तो मुझे बहुत गुस्सा आया कि पंजाब मे पली-बढ़ी और पत्रकारों के परिवार की बहू होकर उसने ऐसा बचकाना सवाल क्यों किया। ख़ैर, मेरी मम्मी को तो आदत है हमारे साथ इस तरह की घुमक्कड़ी की।

 मुख्य सड़क से निकली वह सड़क आगे जाकर एक चौराहे का रूप ले लेती है। दाहिने मुड़ जाने पर दाहिनी तरफ भगत सिंह की स्मृति में बना पुस्तकालय है। उस दिन वह बंद था। बांई तरफ उनका एक मंजिला पैतृक मकान। और उसके इर्द-गिर्द सर उठाए ऊंची-ऊंची इमारतें जिनमें वह छुप सा गया प्रतीत होता था।  एक कमरे में पलंग, अलमारी और कुछ अन्य वस्तुएं नज़र आ रही थीं कांच के दरवाज़े से। दूसरे कमरे में रसोई के बर्तन, अनाज पीसने वाली चक्की वगैरह-वगैरह। मकान के सामने खाली स्थान पर विशाल खुला पार्क है भगत सिहं को समर्पित। पुस्तकालय और पार्क हाल ही यानी साल-डेढ़ साल पहले बनाए गए थे। चौराहे के बांई तरफ सीनियर सेकेंडरी स्कूल है। हमने स्कूल की प्रधानाध्यापिका से मुलाकात की।

मुख्य सड़क के किनारे संग्रहालय स्थित है। स्मारक में कुछ स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरें, दुर्लभ दस्तावेज प्रदर्शित हैं। कुल मिलाकर जिस जोश से लबरेज होकर आप वहां पहुंचते हैं वापसी में अपने साथ वैसा कुछ नहीं ला पाते सिवाय निराशा या मायूसी के। वहां से गुज़र रहे दो स्कूली छात्रों से मैंने पूछा कि यह गाँव क्यों मशहूर है तो जवाब में वे बस शहीद भगत सिहं का नाम ही ले पाए। कुछ-कुछ ऐसी ही अनुभूति मुहम्मद रफ़ी साहब के पैतृक गाँव कोटला सुल्तान सिंह जाकर हुई थी, जहाँ आज की पीढ़ी इन हस्तियों के बारे ज़यादा जानकारी नहीं रखती।

ख़ैर, नवांशहर का नाम शहीद-ए-आज़म भगत सिंह नगर किया गया है।

1980-86 के अपने पंजाब प्रवास के दौरान पंजाबी की पाठ्य पुस्तक में संकलित एक कविता देखी थी, जो कि पंजाबी माध्यम के स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल थी। हमारे सामने वाले चाचा जी प्यारा सिंह की बड़ी बेटी बलबीर से पुस्तक लेकर मैंने पढ़ी थी। मुझे बहुत प्रिय थी। मैंने उसे डायरी में नोट कर रखा था लेकिन कवि का नाम नदारद है, कविता हू-ब-हू देवनागरी में प्रस्तुत कर रही हूं :-



हिंद वासियां नूं अंतिम संदेश


हिंद वासियों रखणा याद सानूं
किते दिलां तों न भुल्ल जाणा
ख़ातिर वतन दी लग्गे हां चढ़न फाँसी
सानूं वेख के नहीं घबरा जाणा
साडी मौत ने वतन दे वासियां दे
दिली वतनां दा इश्क जगा जाणा
देश वासियों, चमकणा चन्न वांगू
किते बदलां हेठ न आ जाणा
करके देश दे नाल ध्रोह यारो
दाग़ क़ौम दे मत्थे ते ना ला जाणा
मूला सिंघ, भगत सिंघ, सुखदेव, राजगुरू
ते सराभे वांगू नांऊ कमा जाणा
जेलां होण कालज वतन सेवकां दे
दाखल हो के डिगरियां पा जाणा
हुंदे फेल बहुते अते पास थोहड़े
वतन वासियो दिल ना ढाह जाणा
प्यारे वीरो, चल्ले हां असीं जित्थे
बस रसतियों तुसी वी आ जाणा।

(कविता का कथ्य पंजाबी में है लेकिन आसानी से समझ आ जाएगी, इसलिए हिन्दी रूपांतर नहीं दिया)






शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के  जन्म दिन पर उन्हें 
हमारी विनम्र श्रद्धांजलि और सलाम ।


प्रस्तुति - नीलम 'अंशु'