मैम, क्या आप मेरा ब्लॉग पढ़ते हो ? (16-2-2011)
फ्लैशबैक - 1
संभवत: नवंबर की 28 तारीख थी उस दिन। अपनी व्यस्ततम दिनचर्या में से वक्त निकाल कर उसने सोचा कि ज़रा नेट पर अपनी मेल और फेसबुक पर एक नज़र डाल ले। अभी पांच मिनट भी न हुए होंगे कि एक दोस्त चैट पर हाजिर था। हां, दोस्त ही तो था, क्योंकि फ्रेंड लिस्ट में नाम तो था ही।
‘हलो मैम ! कैसे हो आप ?’
थोड़ी सी रस्मी बात-चीत के बाद पूनम ने उससे फिर कभी बात करने की बात कह विदा ली। बस, फिर शायद दो हफ्ते बाद एक बार फिर वह चैट पर हाज़िर था। उसने इस बार हलो की बजाए नमस्ते की। बात-चीत शुरू करते ही आपसी परिचय का आदान-प्रदान हुआ। पूनम से उसने पूछा – ‘मैम आप क्या करते हो?’ पूनम को थोड़ा अजीब भी लगा कि जब आप किसी से चैट कर रहे हैं तो आपको अगले की प्रोफाइल से उपलब्ध जानकारी तो पढ़ लेनी चाहिए न। फिर उसने कहा, फैमिली के बारे बताईए। ख़ैर, जवाब में पूनम ने भी उससे विस्तार से जानना चाहा कि वह क्या करता है वगैरह-वगैरह। अपनी जानकारी में उसने बताया कि परिवार में मम्मी-डैडी है और दीदी की शादी हो गई है। मैं एम. बी. ए. कर रहा हूँ। पूनम का आर. जे. होना उसे काफ़ी अच्छा लगा। फिर अगली बार उसने नमस्ते या हलो न कहकर ‘पैरीपैना’ कहा। पूनम को उसका पैरीपैना कहना अच्छा लगा कि चलो आज की पीढ़ी का यह बच्चा संस्कारी है। फिर अचानक उसने पूछा – ‘मैम, क्या आप मेरा ब्लॉग पढ़ते हो ?’
जवाब में पूनम ने कहा – अभी तक तो नहीं पढ़ा। तो गौरव ने कहा – मैम, आप ज़रूर पढ़ना और सुधार के लिए अपने सुझाव देना। पूनम ने वादा किया। उसी की तर्ज़ पर अचानक पूनम पूछ बैठी – आप कहाँ के रहने वाले हैं, शायद पंजाब, हरियाणा या हिमाचल के।
जवाब में गौरव ने कहा कि कुल्लु और पंचकूला।
- मतलब ?
- कुल्लु में घर है और पंचकूला में पढाई कर रहा हूँ।
तो पूनम ने छूटते ही कहा कि मैंने सही गेस किया था न ?
- आपको कैसे पता चला ? उसने पूछा।
- तुम्हारी हिन्दी से।
- मुझे अच्छी हिन्दी नहीं आती। उस ने कहा।
पूनम अब उसे ‘तुम’ कह रही थी। वैसे वह सहजता से किसी को तुम नहीं कह पाती। खैर, गौरव उससे काफ़ी छोटा जो था। पूरे बीस साल छोटा। अब वह हमेशा पैरीपैना कह कर अभिवादन करता। पूनम ने उसे कह भी दिया था कि तुम मुझसे बहुत छोटे हो, इसलिए तुम्हारा पैरीपैना स्वीकार कर रही हूँ। बातचीत के क्रम में पूनम ने जानना चाहा कि वह हॉस्टल में रहता है या पी. जी में।
उसने कहा – रूम लेकर।
- खाना मेस में खाते हो या खुद बनाते हो ?
- खुद ही बनाता हूं।
- तुम्हारी ममा और तुम में से कौन बेस्ट कुक है ?
- नि:संदेह मम्मी। उन्हीं से तो सीखा हूँ।
पूनम को हंसी आ गई। अचानक कह बैठी – अरे, बीच में यह बिहारी स्टाइल की हिन्दी कहां से आ गई ?
...............
कुछ न कहकर अब उसने चैट पर रोमन हिन्दी में लिखना शुरू किया।
- अरे भई, अच्छा खासा तो हिन्दी में लिख रहे थे, अब रोमन में क्यों लिखने लगे ?
- आपने मुझे बिहारी कहा.....
- अरे, तुम्हें बिहारी नहीं कहा। तुम्हारी हिन्दी के स्टाइल को कहा।
तुम्हें कहना चाहिए था कि उन्हीं से तो सीखा है।
- मुझे शु्द्ध हिन्दी नहीं आती।
- शु्द्ध नहीं, सही कहो। शुद्ध हिन्दी कौन बोलता है, मैं भी नहीं बोलती।
ख़ैर, अब वह फिर से देवनागरी में लिख रहा था। बताओ आप, मैं किस भाषा में बात करूं – हिन्दी, पहाड़ी, पंजाबी, हरियाणवी, नेपाली, हिमाचली और पता नहीं कितनी भाषाओं के नाम लिखे थे उसने।
..........
- क्या हुआ, अब ख़ामोश क्यों हो गए आप ?
- होना क्या है। तुम्हारी लंबी चौड़ी लिस्ट की गिनती कर रही थी, उसका उत्साह बढ़ाते हुए पूनम ने कहा।
फिर पूनम ने उससे कहा कि अरे तुमसे पहले बात हुई होती तो अच्छा होता न। मैं तुम्हारे शहर होकर आई हूँ। सेमीनार में गई थी, एक हफ्ता रही तुम्हारे शहर में।
उसने कहा, हमें भी मेजबानी का मौका दिया होता।
अरे, तब तुमसे इतना परिचय थोड़े ही था। खैर पूनम को बहुत अफसोस हुआ कि परिचय का यह सिलसिला पहले बना होता तो मिला जा सकता था।
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इस बार थोड़ी देर तक रस्मी बात करने के बाद पूनम ने बातचीत को विराम देने के इरादे से कहा कि अच्छा चलें, खाना खा लिया जाए।
तो उसने कहा - रुकिए, मैं भी अपना खाना ले आऊँ।
पूनम ने कहा कि तुम अपना लंच करो मुझे तो अभी किचन में जाकर लंच तैयार करना है। छुट्टी के दिन ऐसा ही होता है सुबह का नाश्ता ग्यारह बजे तो लंच चार बजे। बाकी दिनों की तुलना दिनचर्या काफ़ी व्यस्तता भरी जो होती है। बाकी लोग तो खा चुके, मैं सोचती हूं जाकर कि चपाती बनाई जाए या फिर चावल।
अगली बार चैट के दौरान पूनम ने उससे कहा, तुम चाहो तो अपना कॉन्टैक्ट नंबर दे सकते हो। उसने अपना नंबर दे दिया। पूनम ने तुरंत उस नंबर पर कॉल की। उसने फोन उठाय़ा - हलो, जी आप कौन ? उसका स्वर घबराया हुआ सा था।
- वही, जिससे तुम अभी बात कर रहे थे।
- ओह, आप !
- इतने घबराए हुए क्यों लग रहे हो ?
- पहली बार बात हो रही है न।
- पहली बार कहां, इतनी बार चैट के मार्फत बात कर चुके हो।
- चैट और फोन में फर्क भी तो है न जी। किसी से फोन पर पहली बार बात करने में हेजिटेशन तो होती है न। गौरव ने जवाब दिया।
- अरे शोनामोनी, इसमें घबराने की क्या बात है ? हाँ, पूनम उसे शोनामोनी कह कर पुकारती थी। उसे भी यह संबोधन पसंद था।गौरव को यह नाम बहुत पसंद था। (बंगाल में बच्चों को शोना, शोनामोनी, मौना, शोनाई, बाबू आदि संबोधनों से पुकारने का चलन है। कभी-कभी पंजाबी स्टाइल में काका तथा पुत्तर भी कहती। खैर हिन्दी फिल्मों की बदौलत आंचलिक शब्दावली से लोग अछूते नहीं रहे।) गौरव ने कहा कि आप मुझे बताओ, मैं आपको क्या कह कर पुकारूं। बांगला में बताओ। पूनम ने कहा कि संबोधन तुम तय करो, मैं बांगला का शब्द बता दूंगी। गौरव ने दबी ज़बान से कहा- बेबे कहूं। (पंजाबी में पुरानी पीढ़ी के लोग माँ को बेबे कहते हैं।) पूनम ने उससे कहा कि तुम्हारी प्रोफाइल में तुम्हारी डेट ऑफ बर्थ देखी। अरे शोना, अगर ग्रेजुएशन करते ही बाकी सहेलियों की तरह मेरी भी तुरंत शादी हो गई होती तो मेरा तुम्हारी उम्र का बेटा होता। बेटे सा ही लगाव हो गया था। एक अजीब संयोग यह भी था कि उसकी मम्मी पूनम की हमनाम थी। इसलिए भी आत्मीयता का प्रगाढ़ होना स्वभाविक था।
उसने शोनामोनी से कह रखा था कि जब भी तुम्हारा बात करने का मन हो तुम मुझे मिस कॉल दे दिया करो। मैं तुम्हें कॉल कर लिया करूंगी। हां, मैं तुम्हें अपनी तरफ से डिस्टर्ब नहीं करूंगी, पता नहीं कब तुम्हारी पढ़ाई या क्लास का वक्त हो।
तिस पर भी एक बात पूनम ने आज़मा कर देखी कि उसका शोनामोनी से बात करने को बहुत जी चाहने पर जब कभी अपनी तरफ से फोन किया फोन बजता ही रहता। ऐसा बहुत कम हुआ कि फोन रिसीव हुआ हो। वह घंटों बाद जवाब देता। एक बार पूनम ने कह भी दिया कि शोना तू तो फोर टवेंटी है। तेरी दोस्ती भी अजीब है। तुझसे बात तेरी शर्तों पर होती है। जब तेरा जी चाहे तो बात हो। भले ही लाख हमारा जी चाहे बात करने को, तू तो फोन ही नहीं उठाता।
उसने हंस कर कहा, इसमें कौन सी नई बात है, मेरे मम्मी-डैडी भी ऐसा ही कहते हैं।
- क्या कहते हैं ?
- यही कि तू फोर टवेंटी है।
- तुम इतना तंग क्यों करते हो मुझे। अजीब दादागिरी है तुम्हारी।
उसने कहा कि मेरा जब बात करने का मन होगा मैं आपको रात के दो बजे भी फोन करूंगा और आपको मुझसे बात करनी होगी। खैर, ये अलग बात है कि ऐसा कभी नहीं हुआ।
एक दिन ज़िद करने लगा आप मुझे बांग्ला गाना सुनाओ। पूनम ने लाख कहा कि मुझे गाना-वाना नहीं आता।
- मुझे कुछ नहीं पता, जैसा आता है आप प्लीज़ गाकर सुनाओ। आपको नहीं पता मैं बहुत ज़िद्दी हूं। वह नहीं माना और पूनम को जैस-तैसे गुनगुना कर पिंड छुड़ाना पड़ा।
एक वाक्या और याद आता है। उसने बताया जब मोबाइल नहीं था तब हमारे लैंडलाइन पर मेरी गर्ल फ्रेंडस् के फोन आते तो मेरे घर पर न होने के कारण डैडी ही बात कर लेते बाद में बताते कि तुम्हारे लिए अमुक का फोन आया था। पिता-पुत्र दोनों की आवाज़ें बहुत ही मिलती-जुलती थी। पूनम ने उसकी बात काट कर पूछा था - शोनामोनी तुम्हारी कितनी गर्ल फ्रेंडस् हैं ?
- बहुत सी।
- गलत बात है शोना। तुम हरेक को गर्ल फ्रेंड क्यों कहते हो। दोस्त क्यों नहीं कहते। गर्ल फ्रेंड तो कोई खास एक ही हो सकती है, है न। समझे, आगे से बाकियों को दोस्त कहा करो।
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उसे याद आता है जब उसने पूछा था, आपका बर्थडे कब है ?
- मेरी प्रोफाइल में देख लो।
- उहूं, आप ही बता दीजिए।
फिर उसने बच्चों की तरह मचल कर कहा, मैं चाहता हूं कि उस दिन रात बारह बजे आपको सबसे पहले मैं ही विश करूं। पूनम ने यह बात अपने दोस्तों को बताई थी। दोस्तों ने भी उसके उस अजनबी शोनामोनी की इच्छा का मान रखते हुए कहा था, ठीक हम सब आपको बाद में सुबह विश कर लेंगे। इतना ही नहीं शोनामोनी ने यह भी कहा था कि जन्मदिन वाले दिन सुबह नहा-धो कर पूजा करते वक्त मेरे कुलदेवता का स्मरण कर अपनी मन्नत माँग लेना। मन्नत पूरी होने पर आपको मेरे गाँव आना पड़ेगा माथा टेकने के लिए। मैं भी आपके लिए दुआ करूंगा कि वे आपकी इच्छा पूरी करें।
कैसे वह सुबह देर से जगने वाला लड़का पूनम के एफ. एम प्रोग्राम वाले दिन जल्दी जग कर फोन करता कि मुझे आपको परफॉर्म करते हुए सुनना है, मुझे फोन करना प्लीज़। एस. टी. डी. कॉल की परवाह न करते हुए पूनम ने कई बार उसे अपने प्रोग्राम लाइव सुनवाए थे। वह बहुत अच्छी मिमिक्री कर लेता है, पूनम ने उसे भी कहा था, तुम भी आर. जे. क्यों नहीं बन जाते ?
दोनों की सोच काफ़ी मिलती-जुलती थी। बात पूनम के दिल में होती और उधर अगले ही पल शोनामोनी की ज़बान पर आ जाती। पूनम ने कहा, मैं आपना काम-धाम छोड़ कर दूसरों से इतनी बातें नहीं करती लेकिन पता नहीं क्यों तुम्हें हमेशा अटेंड कर लेती हूँ। कभी सोचा है कि ऐसा क्यों है ?
- तुरंत शोना ने कहा – पिछले जन्म का रिश्ता है।
एक बार यही कोई रात के आठ बजे होंगे। मोबाइल बजा। देखा शोनामोनी का नंबर था। पूनम ने कॉल बैक किया। जान-बूझकर गुड मॉर्निंग कहना चाहा पर उससे पहले ही उधर से शोनामोनी ने पैरीपैना न कह कर कहा – गुड मॉर्निंग जी। भला यह कैसी ट्यूनिंग या वेव लेंथ थी ?
हां, दो चीज़ें अलग भी थीं। पूनम को गुस्सा जल्दी आता और उधर वह कूल-कूल। पूनम वेजेटेरियन थी और वह नॉनवेज भी। कहता, ऑमलेट बना रहा हूँ। या फिर कहता, मटन बना रहा हूं, चिकेन बना रहा हूँ वगैरह-वगैरह। पूनम कहती अरे शोना, ऑमलेट बनाते-बनाते अगर तवे पर चूज़ा बन गया तो...... और वह मासूम सी हंसी हंस देता।
कभी कुछ कहता और फिर तुरंत कहता, आपने सच मान लिया क्या? मैं तो मज़ाक कर रहा था। पूनम को समझ न आता कि कौन सी बात मज़ाक है और कौन सी सच। वह कहती, मैं तो जो भी तुम कहो उस पर विश्वास कर लेती हूं। सच मान लेती हूं। आगे की तुम जानो।
कभी कहता, खाते जा रहा हूं, खाते जा रहा हूँ। भूख ही नहीं मिटती।
- सोहबत का असर है।
- वह क्या होती है ? अंग्रेजी में इसे क्या कहते हैं ?
- कंपनी यानी संगत यानी सोहबत। उर्दू का शब्द है।
- आपने मुझे एक नया शब्द सिखा दिया।
- अच्छा बताओ तो सोहबत किसकी ?
- आपकी। पता है मेरे मम्मी-डैडी या सिस्टर को आप देखोगे न तो यही कहोगे कि तुझे खाना नहीं मिलता, सारा वे ही खा जाते हैं क्या ? ओह सारे तां सेहतां वाले ने, खांदे-पींदे घर दे।
- मैं भी तो मोटी हूँ।
- कौन कहता है ? आप मोटी थोड़े ही हैं, तुसी वी खांदे-पींदे घर दे हो। उसका पंजाबी में बात करना पूनम को अच्छा लगता।
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अचानक पूनम का एक अन्य सेमीनार में जाने का प्रोग्राम बना तो उसने तुरंत शोनामोनी को सूचित किया कि मुझे डेढ़ महीने बाद अमुक जगह सेमीनार में शिरकत करने जाना है, तुम अगर उपलब्ध रह सको तो एक दिन तुम्हारे शहर में रुक सकती हूँ। उसने कहा अभी तो कुछ नहीं कह सकता। दिन गुज़रते गए..... अचानक एक दिन पूनम ने गुस्से में उससे कहा कि जाओ मैंने अपना प्रोग्राम बदल लिया है अब मैं सीधे अपने सेमीनार में जाऊंगी मुझे नहीं मिलना तुमसे। पूनम को बड़ी हैरानी होती कि इस कूल ब्वॉय को कभी गुस्सा नहीं आता। वह कहता भी, आप हॉट टैम्परामेंट के हो और मैं कूल ब्वॉय। मुझे कभी गुस्सा नहीं आता।
सेमीनार के लिए जाने का समय नज़दीक आने पर दस दिन पूर्व पूनम ने कहा, मुझे कुछ नहीं पता, मैं आठ को पहुंच रही हूँ, तुम मुझे नौ तारीख की सुबह नौ बजे मिल रहे हो। कहाँ मिलना है, फोन करोगे तो बता दूंगी। नहीं तो तुम्हारी मर्ज़ी।
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ख़ैर, एक तारीख को बात हुई तो उसने कहा कि मैं न ज़रा पैकिंग कर लूं कल दोस्त की शादी पर घर जा रहा हूं (कुल्लु)।
- कब लौटोगे ?
- कल जा रहा हूं, परसों के बाद क्या पड़ता है नरसों, नरसों के बाद।
यानी पांच तक। फिर उसकी तरफ से कोई फोन नहीं आया। न चाहते हुए भी पूनम ने अपनी रवानगी से एक दिन पहले और रवानगी वाले दिन उसे फोन किया। परंतु हमेशा की तरह नो रिप्लाई।
फिर उसने ट्रेन से उतरने से पहले एस.एम.एस किया - 'यू आर सो इररिस्पॉन्सिवल, स्ट्रेंज !'
जवाब में उसने लिखा – 'मी इन रोमिंग।'
पूनम सोच रही थी - इन्सान इस हद तक गैर-जिम्मेदार हो सकता है भला ? उसे तो देर रात पहुंचकर होटल में रुकना था और अगले दिन शोनामोनी से मिल अपने गंतव्य की ओर रवाना हो जाना था। वह तो अपने निर्धारित शेड्यूल के अनुसार उसके शहर गई भी। यह तो वही जाने कि भले ही वह शहर में हो और कह दिया हो रोमिंग में हूं। आजकल रोमिंग में इनकमिंग कॉल इतनी मंहगी भी नहीं। फोन तो हमेशा पूनम ही किया करती थी। हाँ, वह कहा भी करता था कि कभी मेरा भी कॉल रिसीव कर लिया कीजिए। लेकिन पूनम सोचती कि वह बच्चा है, अभी बेरोजगार है।
कहती – जब नौकरी करोगे न तब तुम फोन किया करना। वह कहता, अभी भी मैं पार्ट टाइम ड्राइवरी करता हूँ। पूरी तरह से पापा पर डिपेंड नहीं हूँ। हाँ, पढ़ाई का खर्च पापा का, पॉकेट मनी मेरी अपनी। कभी मज़ाक में कहता - आप एक स्कॉरपियो खरीद लो और मुझे ड्राइवर रख लेना।
अगले दिन के कुछ घंटे जो उसने शोनामोनी के नाम कर रखे थे, मार्केट में घूमते हुए गुजा़रे और फिर एक बेंच पर घंटों बैठ कर आस-पास से गुज़र रहे उसकी उम्र के लड़कों को देख पहचानने की कोशिश करती कि कहीं वह इनमें से कोई हो। सोचती क्या सिर्फ़ ब्लॉग या फेस बुक पर उसकी तस्वीर भर देख कर उसे पहचान लेगी ?
और.......अब पूनम सोच रही थी कि जब इसके पहले भी एक बार वह उसके शहर से गुज़री थी तो उसकी परीक्षाएं चल रहीं थीं। पूनम ने लौट कर उसे बताया कि मैं जाते और लौटते वक्त दोनों बार तुम्हारे शहर से होकर ग़ुज़री हूँ। वहीं से ट्रेन पकडी मैंने। उसने कहा था आपने फोन क्यों नहीं किया, परीक्षा थी तो क्या हुआ शाम को वक्त निकाल कर दस मिनट के लिए तो स्टेशन पर मिल सकता था न।
और अब पहले से बता कर भी क्या हुआ........?
वह सोच रही थी आज की यंग जेनरेशन तो हमारी तुलना में बहुत स्मार्ट और समझदार है, फिर यह सब........ऐसी गैरजिम्मेदाराना हरक़त.........
कितने शौक से वह अपने शोनमोनी के लिए किताबें और उपहार लेकर गई थी। सब वापिस लेकर आना पड़ा। क्या वह सब छलावा था? कम से मेरी तरफ से तो नहीं। सुना था कि पहाड़ के लोग मासूम और सीधे-सादे होते हैं। अनेकों सवालों ने दिमाग में कश्मकश मचा रखी थी। आखिर हुआ क्या? कहाँ चूक हो गई? खैर आज के ज़माने में जहां अपना साया भी साथ छोड़ जाता हो, अपने भी साथ न देते हों, अपने जाये बच्चे तक तो अपने नहीं रहते, फिर भला बेगानों से, अजनबियों से कैसा गिला, कैसा शिकवा, कैसा हक़....... क्या सचमुच अब भी वह अजनबी ही है ?
वह सोच रही थी कि सेमीनार जिसमें उसे मानवीय संबंधों पर पर्चा पढ़ना था... उससे पहले ही यह वाक्या उसे संबंधों की परिभाषा समझा गया। रिश्ते जो कितनी मुश्किल से बनते हैं, मरते दम तक बरसों निभाए जाते हैं मात्र तिमाही में चूर-चूर हो गए।
सदा की तरह दोस्तों ने अब भी यही कहा कि तुम नहीं सुधरोगी। तुम्हें कितनी बार समझाया कि तु्म्हारी तरह दुनिया नहीं चलती। बदलो अपनी सोच और अपने आपको, अपने नज़रिए को। भावुकता से काम मत लिया करो। लोग इमोशनस से खेलते हैं।
खैर.....यही सोच कर इस दिल को समझा रही है कि कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, कोई यूं ही बेवफ़ा नहीं होता। अब तो संभल जाना चाहिए लेकिन क्यों? दूसरों की ख़ातिर वह खुद को क्यों बदले? क्यों मुखौटा लगाए, नहीं वह तो जैसी है वैसी ही रहना चाहती है। दुनिया चाहे भावनाओं से खिलवाड़ करती रहे। और उसने गुस्से से शोना के दोनों फोन नंबर अपने मोबाइल से डिलीट कर डाले।
फिर भी कभी-कभी रह-रह कर मन में एक हूक सी उठती रहती है - आखि़र क्यों शोना? आख़िर क्यों किया तुमने ऐसा? कहाँ ख़ामी रह गई थी मेरी तरफ से। लेकिन कहीं से भी कोई आवाज़ नहीं आती .......
सिर्फ़ ख़ामोशी और ख़ामोशी...... और वह सोचती है कि क्यों कहते हैं कि खामोशिय़ों की भी होती है जबां....... या फिर जब जबां चुप हो तो ख़ामोशियां बात करती हैं.......................
और फिर पर्दा गिर गया यानी THE END.......
क्या इतनी सहजता से हो जाता है THE END
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फ्लैशबैक - 2
फ्लैशबेक -1 वाला आलेख जब लिखकर उसने अपने बलॉग पर लगाया अभी वह ऑनलाइन ही थी कि कॉल बेल बजी और उसे बीच में ही छोड़ कर उठना पड़ा। और जब आगंतुकों से बात करके 20-25 मिनट बाद लौट तो देखा मैसेज बॉक्स में शोन के कई मैसेज थे जिनमें बार-बार सिर्फ़ सॉरी लिखा हुआ था। और आखिरी मैसेज था – आप मुझे पांच मिनट में कॉल करो, नहीं तो मैं सब कुछ ख़त्म कर दूंगा। और उसके बाद यानी वो 5 मिनट की समय सीमा गुज़र जाने के बाद स्क्रीन पर लिखा था – The End. वह फेस बुक से और ईमेल अकांउट् से पूनम को हटा चुका था और मोबाइल नंबर तो पूनम खुद ही डिलीट कर चुकी थी। यानी संपर्क साधने का कोई रास्ता नहीं बचा था। पूनम को उसकी जल्दीबाजी पर बहुत दु:ख हुआ। परंतु कुछ नहीं हो सकता था।
महीने भर बाद पूनम को कहीं किसी राइटिंग पैड पर शोनामोनी के नंबर मिल गए। उसने कई बार उसे फोन किया लेकिन या तो नो रिप्लाई होता या आवाज़ पहचानने के बाद काट दिया जाता। ख़ैर, इसी बीच उसका जन्म दिन भी आया। पूनम ने पूरी कोशिश करके खुद को रोका और चाहते हुए भी उसे फोन नहीं किया। यह तय था कि उस दिन सुबह ऑफ़िस जाते वक्त वह मंदिर होते हुए जाएगी। सुबह मौसम ख़राब था, उसने सीधे ऑफ़िस जाने का फैसला किया कि शाम को वापसी में मंदिर ज़रूर जाएगी। शाम को लौटते वक्त ज़ेहन से बात निकल गई और मंदिर रास्ते में पीछे छूट गया। जहां उसे याद आया वहीं से फिर वापसी का रुख किया मंदिर की तरफ। वो काफ़ी पुराना (लगभग तीन सौ साल) मंदिर है माँ काली का उसके इलाके में। वहाँ उसने अपने शोना के नाम से कुछ राशि गल्ले में डाली और माँ से उसके सफल और सुखमय भविष्य की दुआ की। साथ ही प्रार्थना की कि माँ मेरे शोना को सुबुद्धि देना कि वो मुझसे बात करे। यह तो वही जानती है कि उसके दिल पर क्या गु़ज़र रही थी। रह-रह कर आँखें भर आतीं उसकी। जो बच्चा अक्सर उससे बात किए बिना न रहता हो वह अब कैसे रह रहा है। ख़ैर कोई और होता तो पूनम के मन में भी ईगो प्रॉब्लम आती कि जब उसे परवाह नहीं तो मुझे ही क्यों पड़ी है लेकिन दूसरी तरफ दिल के कोने से आवाज़ आती कि वह तो बच्चा है, नादान है तो तुम्हारे बड़े होने का क्या फ़ायदा ? यही सोच कर दो-तीन हफ्तों बाद उसे एस.एम.एस. कर डाला - "अगर तुम्हें मुझसे ज़रा सा भी स्नेह, दुलार, अपनापन मिला हो तो एक बार बात कर लो। तुमसे बड़ी होने के नाते एक मौक़ा दे रही हूँ। तुम तो कूल ब्वॉय हो न ग़लतफ़हमी दूर कर लो वर्ना तुम्हारे इष्ट देव से प्रार्थना करूंगी कि मेरे दिमाग की हार्ड डिस्क से तुम्हारा नाम भी डिलीट कर दें। होप योर फाइनल एग्जैम्स आर ओवर।" तुरंत शोनामोनी का फोन आया - ड्राइविंग में हूँ, बाद में बात करता हूँ। लेकिन, अगले दस दिनों तक कोई रिस्पांस नहीं। ग्यारहवें दिन पूनम ने उसे फिर फोन किया तो उसने कहा, थोड़ी देर में मैं कॉल करता हूँ आपको। पूनम ने कहा, इसे मेरा आख़िरी कॉल समझना, अब अगर तुम्हारा फोन नहीं आया तो मैं तुम्हें कभी भूलकर भी फोन नहीं करूंगी। अब तुम्हारा जी चाहे तो कॉल करना वर्ना मैं अब अपनी तरफ से कोई एफर्ट नहीं करूंगी। एक घंटे बाद उसने कॉल की। पूनम ने उसकी कॉल रिसीव की और आदतन कहा, मैं डायल करती हूँ। यही कोई आधा घंटा बात हुई होगी। शोना ने बिलकुल नॉर्मल अंदाज़ में बात की और कहा, 'जो हुआ सो हुआ, जो बीत गई सो बीत गई।' पूरे 139 दिनों बाद दोनों की ख़ामोशी टूटी। ज़िद तो ऐसी देखिए कि उसने अपना फेसबुक अकांउट तक निष्क्रिय कर डाला था।
पूनम को सकुन है कि फिर सब कुछ पहले सा है। उसे अपने पर पूरा भरोसा था कि मेरा चयन ग़लत नहीं हो सकता। ख़ैर इसी बीच एक एफ. बी. पत्रकार दोस्त से फोन पर भी बात होती। बात-चीत के दौरान उन्होंने कहा कि आपके शहर में मेरे कई मित्र और परिचित हैं। पूनम को उन्होंने जो नाम गिनाए, पूनम सबसे परिचित थी। उन्होंने कहा, अरे आप तो बिलकुल अजनबी नहीं लगती, आप हमारे सारे परिचितों को जानती हैं, आप तो घर की लगती हैं। पूनम ने कहा, भले ही महानगर हो लेकिन साहित्य और पत्रकारिता से जुड़े लोग तो गिनती भर के ही हैं न, इसलिए सभी सबको जानते हैं। बात-चीत के दौरान उस दोस्त ने कहा कि आजकल लोग इमोशन्स की क़द्र नहीं करते। उन्होंने अपने किसी दोस्त का हवाला दिया। पूनम ने कहा कि मैं ऐसा नहीं मानती और उसने बातों-बातों में उन्हें शोनामोनी का वाक्या बताया। उन्होंने कहा कि छोड़िए, आजकल की युवा पीढ़ी के लड़के ऐसे ही होते हैं। टाईम पास करते हैं, चार सौ बीसी करते हैं। पूनम ने कहा कि हमारा रिश्ता टाईम पास वाला क़तई नहीं था। खैर, हद तो तब हो गई जब उस दोस्त ने एक दिन एस. एम. एस. किया किया 'गुड नाइट मैम, आय वॉज़ दैट यंग परसन।' मैसेज देखते ही पूनम का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया कि इसी आदमी ने उसके शोनामोनी को टाईमपास और चार सौ बीस कहा था और आज कह रहा है कि समझ लीजिए मैं वही यंग परसन हूं यानी खुद को....... पूनम ने तुरंत उन्हें अनफ्रेंड कर दिया और मोबाइल में भी ब्लैक लिस्टेड कर दिया। आदमी की इतनी बड़ी हिम्मत कि मेरे शोनामोनी को ऐसा कहे। और फिर पूनम ने उस दिन शोनामोनी को यह वाक्य़ा बताया और पूछा कि बताओ शोना क्या मैंने गलत बंदे का चयन किया है? शोना ने कहा, आपका दिल क्या कहता है? पूनम ने कहा, मेरा दिल कहता है कि मेरा चयन क़तई ग़लत नहीं हो सकता, मेरा शोना कभी ग़लत नहीं हो सकता। जवाब में उसने कहा, आपका दिल ठीक कहता है।
और उस दिन पूनम ने उससे कहा था कि शोना तू एक बार मेरे सामने आ तुझे मैं तीन थप्पड़ लगाऊंगी, तुमने मुझे इतना तंग क्यों किया। उसने मज़ाक में कहा, आप मीडिया से जुड़ी है, प्लीज़ मीडिया के सामने मत लगाना, मीडिया वाले मेरा कचूमर निकाल देंगे।
इस दौरान फिर कई बार बात हुई। पिछले हफ्ते अचानक उसका फोन आया। काफ़ी देर बात हुई। फिर अचानक उसने कहा, एक गाना सुनाओ। पूनम ने कहा, तुम फिर शुरू हो गए। मुझे कुछ नहीं पता, गाना सुनाओ। पूनम के मुँह से अनजाने में ही निकल गया, झापड़ खाओगे तुम। उसने कहा, तीन थप्पड़ तो आपके पहले से ही ड्यू हैं अब एक झापड़ भी। अच्छा, आप बताओ थप्पड़ और झापड़ में क्य़ा फर्क़ होता है? पूनम ने कहा मुझे नहीं मालूम। उसने कहा, थप्पड़ सीधा पड़ता है जिधर हाथ की रेखाएं होती हैं और झापड़ उलटा पड़ता है। झापड़ थप्पड़ से ज्यादा तगड़ा और तीखा होता है। पूनम ने कहा, लगता है काफ़ी Experience है तुम्हें। बहुत खाए हैं क्या? अजी खाए नहीं, खिलाए हैं, आपको पता है न मैं कूल-कूल ब्वॉय हूं लेकिन जब गुस्सा आता है न.... जब मुझसे मिलोगे न तब देखना.....। पूनम ने बीच में ही बात काट कर कहा, जब मिलेंगे तब?... वाक्य अधूरा छोड़ दिय़ा (वह कहना चाहती थी कि जब मिलने का वक्त आया था तब तो तुम मिलने पहुँचे नहीं।) शोना ने तुरंत कहा, कह डालो आप जो कहना चाहती थीं, कह डालो, मन में नहीं रखते। पूनम ने कहा, चलो छोड़ो, जाने दो।
पूनम सोच रही थी कि हाँ, सचमुच कुछ रिश्ते पिछले जन्मों या जन्म-जन्मांतरों के होते हैं तभी तो वह चाहकर भी अपने शोना की बचकानी हरकतों पर नाराज़ नहीं हो पाई। शायद कोई हमउम्र दोस्त होते तो परिस्थिति कुछ और होती। दोनों तरफ से ईगो प्रॉब्लम होती कि मैं क्यों पहल करूं। ख़ैर, पूनम ने इस बात को सही साबित किया कि नारी का काम रिश्तों को तोड़ना नहीं वरन् जोड़ना होता है और उसे खुशी थी कि शोनमानी ने भी उसकी भावनाओं को समझा। उसे अपने चयन और फेस बुक से मिले इस दोस्त पर नाज़ है।
मेरा अपना फेस बुक का सफ़र 26 अगस्त 2010 से शुरू हुआ था और अपने फेस बुक के सफ़र की वर्ष गाँठ के मौके पर मैं सोच रही हूं कि चलो पूनम जैसा भी कोई तो ऐसा दोस्त है जिसे फेस बुक से मिली दोस्ती पर नाज़ है, जो फेस बुक के प्रति कृतज्ञ है।
प्रस्तुति - नीलम शर्मा 'अंशु'
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