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25 जुलाई 2010


























पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी तथा दार्जिलिंग जिलों में स्थित
ऐतिहासिक महत्ता वाले भवनों की अनूठी चित्र प्रदर्शनी ।
पश्चिम बंगाल हेरिटेज कमिशन द्वारा 23 जुलाई से 25 जुलाई तक एक अनूठी त्रिदिवसीय फोटो प्रदर्शनी का आयोजन नंदन परिसर (कोलकाता) स्थित गगनेन्दर प्रदर्शनशाला में किया गया। 23 जुलाई को पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री, श्री योगेश चंद्र बर्मन ने प्रदर्शनी का उदघाटन किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि थे, तथ्य तथा संस्कृति राष्ट्र मंत्री श्री अंजन बेरा। पौर मंत्री श्री अशोक भट्टाचार्य भी उपस्थित थे। प्रदर्शनी का अनूठापन था, उत्तरी बंगाल के जलपाईगुड़ी एवं दार्जिलिंग जिलों में स्थित ऐतिहासिक महत्व वाले भवनों की फोटो प्रदर्शनी। जलपाईगुड़ी की सुश्री अनीता दत्ता ने ऐतिहासिक महत्ता वाले इन भवनों को अपने कैमरे में सहेजा डॉ। सुदीप दत्ता ने। चूँकि प्रदर्शनी में स्पेस की एक सीमा होती है, इसलिए पूर्ण तथ्यों को वहां प्रस्तुत करना संभव नहीं। तथ्य और संस्कृति विभाग इसे पुस्तक रूप में प्रस्तुत करने के लिए प्रयत्नशील है। तस्वीरों में जलपाईगुड़ी जिले के अलीपुरद्वार स्थित नल राजा का गढ़, मयनागुड़ी स्थित जल्पेश मंदिर, जटिलेश्वर मंदिर, जलपाईगुड़ी का सेंट माईकल ऐंड ऑल ऐंजलस् चर्च, पुरानी मस्ज़िद, राडबाड़ी का तोरण तथा दार्जिलिंग जिले के कार्सियांग स्थित विक्टोरिया ब्वॉयज़ स्कूल, गिदापहाड़ स्थित शरत चंद्र बसु का मकान, दा्र्जिलिंग का दरभंगा हाउस, विंडमेयर होटल, जिमखाना, लॉरेटो कॉन्वेंट, कलिन्टन, गिरिबिलास तथा ट्वॉय ट्रेन उल्लेखनीय हैं। सुश्री अनीता ने बताया कि दर्शकों का बहुत अच्छा रिस्पांस मिला हैं। कुल तीन दिनों में साढ़े तीन सौ से अधिक दर्शक प्रदर्शनी में आए। यह एक शोधपरक कार्य है जो सचमुच ही लाजवाब, काबिल-ए-ग़ौर तथा काबिल-ए-तारीफ़ है।


चित्र सं. 1 - सन् 1878-79 में स्थापित दार्जिलिंग भुटियाबस्ती का बौद्ध मठ।


चित्र सं. 2 - जलपाईगुड़ी स्थित भवानीपाठक मंदिर जो कि पैगोडा के रूप में निर्मित है। रायकत शिष्यसिंह के ज़माने में निर्मित इस मंदिर का बाद में स्कॉट या हैचिंगन साहब के आर्थिक सहयोग से पुनर्निर्माण किया गया।


चित्र सं. 3 - दार्जिलिंग रेलवे की यह ट्वॉय ट्रेन 18 मार्च, 1880 को सिलीगुड़ी से तीनधरिया तक चलाई गई थी। जुलाई 1881 से दार्जिलिंग तक। दुनिया के सर्वोच्च रेल पथ पर चलने वाली इस ट्रेन को 6 नवंबर, 1999 को विश्व धरोहर घोषित किया गया।
प्रस्तुति - नीलम शर्मा 'अंशु '

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