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18 अक्टूबर 2009

मेरे भईया, मेरे चंदा, मेरे अनमोल रतन ..........

'भ्रातृ द्वितीया यानी भाई दूज के अवसर पर सभी भाई-बहनों को हार्दिक शुभ कामनाएं !'


यह त्योहार पूरे देश में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। यूं अखिल भारतीय स्तर पर रक्षा बंधन और भाई दूज के त्योहार का एक सा महत्व है परंतु बंगाली संस्कृति में भाई दूज ज़्यादा महत्वपूर्ण है। राखी की तुलना में यह त्योहार ज़्यादा पारंपरिक तौर पर मनाया जाता है।

इस दिन भाई बहन एक दूसरे के पास अवश्य पहुंचते हैं। बचपन से देखती आई हूँ कि मेरे मामा मध्य प्रदेश में रहते हैं तो हर बार माँ वहां नहीं जा पाती है, तो डाक या कोरियर से टीका या राखी भेज दी जाती है, साथ में मुंह मीठे के लिए चीनी की पुड़िया भी ताकि शगुन के तौर पर वे टीका लगा लें या राखी बांध लें। आज कल तो सभी की व्यस्तताएं बहुत बढ़ गई हैं, चाह कर भी इन्सान मजबूरन कई बार नहीं जा पाता।

आज मेरा एफ. एम. रेनबो पर लाईव टॉक शो था। भाई दूज पर ही केन्द्रित था। मसलन आज आप किस तरह सेलिब्रेट करने वाले हैं और जब आपने अपनी पहली कमाई से बहना को उपहार दिया था तो क्या दिया था और कैसी अनुभूति हुई थी आपको, वगैरह, वगैरह। शो में मेरे पहले फोन कॉलर आए मंटू टेलर। आते ही उन्होंने मुझसे कहा कि दीदी मुझे टीका लगाईए। मैंने उनसे बकायदा सर को रूमाल से ढकने का अनुरोध किया, फिर उन्हें टीका लगाया और लड्डू तथा बर्फी से मुँह मीठा करवाया। बेचारे मंटु साहब इतने भावुक हो गए कि बस इतना ही बताया कि दीदी मेरी बहन आगरा मे रहती है, आज के दिन नहीं आ सकी। फिर भावुकता वश उनके शब्द उनका साथ न दे पाए, तथा ‘इससे ज़्यादा और नहीं बोल पा रहा हूँ’ कहकर माफ़ी मांगते हुए उन्होंने लाईन छोड़ दी। और वो कहते हैं न कि ‘जीने के बहाने लाखों हैं, जीना तुझको आया ही नहीं, कोई भी तेरा हो सकता है, तूने किसी को अपनाया ही नहीं’, की तर्ज़ पर मेरे सभी कॉलर फ्रेंडस् सुमित, लाडला मोल्ला, राम बालक दास, हफ़ीज़ उल्ला लस्कर वगैरह ने मुझसे ऑन एयर टीका लगवाया। मैंने उन्हें शुभकामनाएं दीं और उन्होंने भी मुझे दुआओं के तोहफे दिए। राम बालक ने कहा कि मेरा भी कुछ देने का फर्ज़ बनता है तो दीदी जब आप आकाशवाणी से बाहर निकलेंगी न, मेन गेट पर एक फोर व्हीलर खड़ा होगा गुलदस्तों से लदा, वह आपके लिए ही होगा।

हफ़ीज़उल्ला ने कहा कि हमारे यहां तो भाई दूज नहीं मनाई जाती है, लेकिन प्रोग्राम के माध्यम से सुनकर बहुत अच्छा लग रहा है। मैंने उन्हें बताया कि आजकल त्योहार किसी कम्युनिटि विशेष के न रहकर सबके हो गए हैं। सभी द्वारा मनाए जाते हैं। और, अगर कोई परंपरा अच्छाई के लिए हो तो उसे दूसरे धर्म वालों को भी अपना लेना चाहिए। हफ़ीज़ को मैंने बादशाह हुमायूं के राखी बांधे जाने का प्रसंग याद दिलाया।

इतने सालों में इतनी बार राखी और भाई दूज पर प्रोग्राम किए हैं, इस बार, पहली बार श्रोताओं ने ऑन एयर टीके का अनुरोध किया। अच्छा लगा। मंटु टेलर तो भावुक हो गए। भावुकता तो मुझमें भी बहुत है लेकिन ऑन एयर इस पर काबू रहता है, यह ईश्वर की कृपा है। वर्ना मैं बात-बात पर भावुक हो जाती हूँ। ऐसे ही 1998 में मैंने ‘बचपन’ पर एक प्रोग्राम किया था कि चलिए आपको बचपन के गलियारे में ले चलें। टीन एजर बच्चों विप्लव चक्रवर्ती तथा मीता के साथ-साथ उनकी माँ शुक्ला चक्रवर्ती भी रेगुलर क़ॉलर थीं। वे मेरे उस प्रोग्राम में आईं और बचपन की काफ़ी बातें उन्होंने शेयर की। पिता को याद करते हुए तो वे ऑन एयर फफक-फफक कर रो ही पड़ीं। उधर घर पर प्रोग्राम सुन रहीं मेरी कलीग गीता दी को टेंशन हो रही थी कि अभी नीलम का स्वर भीग जाएगा, ऑन एयर रो पड़ेगी अपने पिता को याद कर। अगले दिन ऑफिस आकर उन्होंने मुझे बताया कि मुझे बहुत डर लगा रहा था कि तुम रो पड़ोगी, क्योंकि पांच-छह महीने पहले ही मेरे पिता जी का अप्रत्याशित निधन हुआ था । लाईव परफॉर्म करते हुए ईश्वर की कृपा से उसे वक्त अपने पिता की बात बिलकुल ज़ेहन में नहीं आई, वर्ना मैं इमोशनल हो जाती और प्रोग्राम का कबाड़ा हो जाता। तो आज भी मंटु जी के साथ भावुक होते-होते मैंने ख़ुद पर नियंत्रण रखा।

प्रस्तुति : नीलम शर्मा ‘अंशु’

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