बंगला कवि शंख घोष को राष्ट्रपति ने दिया 52 वां ज्ञानपीठ पुरस्कार।
महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुख़र्जी ने 27 अप्रैल वृहस्पति वार की शाम नई दिल्ली में बांगला के मूर्धन्य कवि, आलोचक एवं शिक्षाविद् प्रोफसर शंख घोष को 52वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया। संसद भवन के बालयोगी सभागार में आयोजित एक गरिमापूर्ण समारोह में मुख़र्जी ने प्रोफेसर घोष (85) को वर्ष 2016 के लिए यह सम्मान प्रदान किया। सम्मान में 11 लाख रुपए का चेक, वाग्देवी की एक कांस्य प्रतिमा, प्रशस्ति पत्र और शाल तथा श्रीफल शामिल हैं। मुख़र्जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि उन्हें प्रोफेसर घोष को सम्मानित करते हुए इसलिए भी प्रसन्नता हो रही है कि वे उस भाषा में लिखते है जो मेरी मातृभाषा है। ताराशंकर बंदोपाध्याय, आशापूर्ण देवी, विष्णु दे, महाश्वेता देवी एवं सुभाष मुखोपाध्याय के बाद वे बंगला के छठे ऐसे लेखक हैं, जिन्हें यह सम्मान मिल रहा है। वह मूर्धन्य कवि और आलोचक होने के साथ -साथ प्रतिष्ठित शिक्षक और यह सम्मान पाने वाले सबसे योग्य लेखक हैं।
शंख घोष ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि, मुझसे भी ज़्यादा योग्य व्यक्ति हैं जो इस सम्मान के हक़दार हैं। रबींद्र साहित्य के मर्मज्ञ शंख घोष को नरसिंह दास पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान, रबींद्र पुरस्कार, देसिकोट्टम, सुनील गंगोपाध्याय स्मृति पुरस्कार और पद्मभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।
आदिम लता, गलमोमॉय, मुर्खो बारो, सामाजिक नौय, बाबोरेर प्रार्थना, दिलगुली रातगुली, निहिता पातालछाया आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं।
इस अवसर पर प्रवर परिषद के अध्यक्ष डॉ. नामवर सिंह ने कहा कि यह ऐतिहासिक अवसर है कि कवि श्री शंख घोष को विभूषित किया जा रहा है, मैं उन्हें हार्दिक बधाई देता हूँ । उनकी कविताएं लयबद्धता की सीमाएं तोड़कर पाठकों के अपना कथ्य प्रेषित करती हैं।
कार्यक्रम के आरंभ में आकाशवाणी दिल्ली के कलाकारों ने राष्ट्रीय गान और सरस्वति वंदना प्रस्तुत की।
स्वागत संबोधन किया भारतीय ज्ञानपीठ के वर्तमान अध्यक्ष न्यायमूर्ति विजेंद्र जैन ने और अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया भारतीय ज्ञानपीठ के प्रबंध न्यासी साहू अखिलेश जैन ने।
पूरे कार्यक्रम का कुशल संचालन किया आकाशवाणी दिल्ली के कार्यक्रम अधिशासी जैनेन्द्र ने।
अपने संबोधन के दौरान ़डॉ. नामवर सिंह ने शंख घोष की निम्न पंक्तियां भी उद्धृत की : -
लिखना ही पड़ेगा कि मैं भी हूँ
मैं भी हूँ तुम्हारे साथ
हाथ मिलाने के लिए
और जिसे लिखूंगा
उसे भी शायद आना होगा
उस ने कह दिया है
स्वप्न में
खुलने लगे हैं
रास्तों में बने तोरण !
प्रस्तुति - राजेश शुक्ला
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