1) क़दम - क़दम बढ़ाए जा.......
23 जनवरी ! आज सारा राष्ट्र नेताजी सुभाष को श्रद्धा अर्पित कर रहा है। हम भी हमारे देश के उस महान नायक, सेनानी और जांबाज सपूत को नमन करते हैं, सलाम करते हैं।
‘तुम मुझे खून दो मैं, तुम्हें आज़ादी दूंगा ।’
धन्य है वह जज़्बा, धन्य है वह व्यक्तित्व, धन्य है वह देश ! इन सब पर हमें नाज़ है।
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2) फ़िल्म निर्देशक-निर्माता रमेश सिप्पी - हैप्पी बर्थडे टू यू .......
आज ही के दिन भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के जाने-माने निर्देशक, निर्माता रमेश सिप्पी का यानी 23 जनवरी 1947 को अविभाजित हिंदुस्तान के करांची में जन्म हुआ था। फ़िल्मी माहौल उन्हें बचपन से ही मिला। मात्र छह वर्ष की उम्र से ही वे पिता जी.पी. सिप्पी की फ़िल्मों से सेटस् पर जाने लगे थे और इतना ही नहीं नौ वर्ष की उम्र में पिता द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘शहंशाह’ में उन्होंने अचला सचदेव के पुत्र की भूमिका निभाई।
पिता द्वारा निर्मित फ़िल्मों ‘जौहर महमूद इन गोया’ और ‘मेरे सनम’ के वे निर्माण और निर्देशन दोनों पहलुओं से जुड़े थे। व्यक्तिगत रूप से उनकी पहली निर्देशित फ़िल्म थी 1969 में ‘अंदाज़’। इससे पहले वे सात सालों तक सहायक के रूप में काम करते रहे। अंदाज़ उनकी पहली moderate success थी लेकिन 1972 में आई उनकी दूसरी फ़िल्म ‘सीता और गीता ’ highly successful रही।
1975 में रमेश सिप्पी उर्फ रमेश गोपालदास सिपाहीमालानी ने ’शोले’ का निर्देशन किया जो कि बॉलीवुड के इतिहास में ब्लॉक बस्टर रही और आज भी मानी जाती है। लिजेंडरी खलनायक के किरदार में स्व। अमज़द खान की परफॉर्मेन्स यानी गब्बर सिंह आज भी हमारे ज़ेहन में ज्यों के त्यों बसे हुए हैं। गब्बर का यह कैरेक्टर हक़ीकत की ज़मीन से बावस्ता था। शोले में जहां फ़िल्मी गब्बर ने सिर्फ़ ठाकुर बलदेव सिंह के कुलदीपकों को बुझाया था लेकिन चंबल के कुख्यात ने दो दर्जन परिवारों के कुल दीपकों को बुझा कर निर्ममता की हदें पार कीं। फिल्म का गब्बर मूल रूप से मध्य प्रदेश के भिंड का रहने वाला था और उसने 1957 में 22 बच्चों को एक क़तार में खड़े कर गोलियों से भून डाला था। ऐसा उसने एक तांत्रिक के यह कहने पर किया था कि अगर वह 116 बच्चों की बलि दे तो उसके पराक्रम में वृद्धि होगी। 13 नवंबर 1959 को मध्य प्रदेश पुलिस के तत्कालीन आई।पी।एस. आर. पी. मोदी ने ‘गम का पुरा’ नामक गांव में एक मुठभेड़ में ढेर कर दिया था। गब्बर को ढेर किए जाने का यह समाचार तत्कालीन आई. जी. के. ऐफ. रुस्तम जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री प. जवाहर लाल नेहरू को खुद उनके जन्म दिन पर उपहारस्वरूप सुनाया था।
पत्रकार तरुण कुमार भादुड़ी लिखित पुस्तक ‘अभिशप्त चंबल’ में भी गब्बर का उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि तंबाकू चबाने और ‘कितने आदमी थे….’ डॉयलॉग इसी पुस्तक से आधारित माने जाते हैं। जब अमज़द खान को इस रोल के लिए चुना गया तो उन्होंने यह पुस्तक ख़ास तौर से मंगवाई और शूटिंग के दौरान अपने साथ रखते थे। शायद तभी गब्बर का क़िरदार इतना जीवंत हो पाया। फ़िल्म शोले के लिए रमेश सिप्पी को लिजेंडरी फ़िल्म फेयर के Best Film of 50 years award से नवाज़ा गया।
रमेश सिप्पी निर्देशित अन्य फिल्में शान (1980), शक्ति (1982), सागर(1985) moderately successful रहीं।
उन्होंने 1987 में देश विभाजन पर आधारित TV serial ‘बुनियाद’ का निर्देशन किया जो कि दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ। इस धारावाहिक की सफलता और लोकप्रियता से आप भलीभांति परिचित हैं। इसके बाद उन्होंने भ्रष्टाचार(1989), अकेला (1991), ज़माना दीवाना (1995) निर्देशित कीं लेकिन ये बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई। इसके बाद उन्होंने निर्देशन से हाथ खींच लिया लेकिन बतौर निर्माता वे आज भी सक्रिय हैं।
अपने पुत्र रोहण सिप्पी निर्देशित कुछ न कहो (2003), ब्लफ मास्टर(2005) प्रोड्यूस कीं। 2006 में मिलन लुथरिया निर्देशित टैक्सी नंबर 9211, 2008 में कुणाल राय कपूर निर्देशित The President is coming और निखिल आडवानी निर्देशित ‘चांदनी चौंक टू चायना’ को भी प्रोड्यूस किया।
आज रमेश सिप्पी के जन्मदिन पर उन्हें ढेरों शुभकामनाएं, बधाईयां।
- नीलम शर्मा ‘अंशु’