तेरी मेरी उसकी बात (4)
इस कॉलम में इमरोज़ साहब, के. प्रमोद जी, श्रीमती आशा रानी शर्मा के बाद इस बार के अतिथि रचनाकार हैं- श्री श्याम नारायण सिंह।
1) पागल
हर एक पागल के पीछे एक दर्द भरी दास्तां है
नज़रें उठा कर देखो, पागल सारा जहां है।
सुना, एक वफ़ा के साथ बेवफ़ाई किसी ने की
वादा किया, फ़िर गैर से सगाई किसी ने की
इस सोच और फ़िक्र ने उसे घायल बना दिया
ज़िक्र किया इसका, तो जहां ने उसे पागल बना दिया ।
दुनिया के इस दस्तूर से हर बंदा परेशां है
नज़रें उठा कर देखो, पागल सारा जहां है।
पागल है, जाने दो, यह सदां थी फैली हुई
दूसरे रोज़ पाया गया, लाश उसकी थी फेंकी हुई
हाथ में एक ख़त था, कहानी उसकी थी लिखी हुई
पागल हुआ, कैसे हुआ, काग़ज़ पे हर इबारत थी उभरी हुई।
किसी ने न ग़ौर किया, मिट गया इक नौजवां है
नज़रें उठा कर देखो, पागल सारा जहां है।
कोई पागल है, धनमान लुटने से
कोई पागल है यार, अपने मेहमान छूटने से
पर वह पागल हुआ, इज़्जत बहन की लुटने से।
आघात वह सह न सका, पागल बना और कहाँ है ?
नज़रें उठा कर देखो, पागल सारा जहां है।
मैं भी पागल हूँ, सुनो पागल तुम भी हो।
वक़्त है नर्तकी, पाँवों के उसकी पायल तुम भी हो,
टूटते हो, जोड़ लेती है, बजने फ़िर लगते हो
घुंघरू की आवाज़ में ही सही, पर यही कहते हो –
बचा नहीं है कोई, पागल हर इंसां है
नज़रें उठा कर देखो, पागल सारा जहां है।
2) मधुमास
तेरी झील सी गहरी आँखों में इक प्यास हमने देखी है।
सपने में, फूल सा चेहरा तेरा उदास हमने देखा है।
तेरी अल्हड़ हरकतों ने इस दिल में जगह पाई है ।
गुस्से में भींचना ओंठ तेरा सच, अदा यह मुझे बहुत भाई है।
तुम न आना चाहो पास मेरे यह तो मर्ज़ी है तेरी।
पर, तेरी यादों का साया यहीं आस-पास हमने देखा है।
मुड़-मुड़ कर देखना और धीरे से मुस्कराना तेरा ।
कैसे बचें इन बेरहम नज़रों से हर अंदाज़ है क़ातिलाना तेरा।
तेरी चुलबुली सी चहक से खिल उठता है यह उपवन।
क्योंकि तेरे आने से यहाँ आते मधुमास हमने देखा है।
क्यों तूने किसी का दिल तोड़ने की कसम खाई है ?
क्यों तू आ नहीं सकती जब तेरी याद चली आई है।
कौन कहता है कि तू रोज़ इस महफ़िल से चली जाती है ।
तेरे नहीं रहने पर भी यहाँ रहने का अहसास हमने देखा है।
- श्याम नारायण सिंह, कुसुंडा, धनबाद (झारखंड) ।
प्रस्तुति : नीलम शर्मा 'अंशु'
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