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17 मई 2011

एक मौका फिर से अपनी बात शेयर करने का......




(107 AIR FM Rainbow कोलकाता - छायालोक के माध्यम से 
16-5-2011 को शाम 6-8 तक लाइव प्रसारित)


'पैगाम दे रही है ये शाम ढलते-ढलते
बनती है ज़िंदगी में हर बात बनते-बनते।'

तभी तो यह भी कहते हैं कि ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है और चार दिनों की ज़िंदगी है तो इस छोटे से जीवन को जी भर कर जी लेना चाहिए। इसके हर पहलू का ज़िंदादिली से सामना करना चाहिए।

दोस्तो, क्या कभी-कभी ऐसा नहीं लगता कि यह एक जीवन भी कम है। काश ! एक ज़िंदगी और मिल जाए लेकिन ऐसा क़तई मुमकिन नहीं क्योंकि ऊपर वाले से अपना-अपना हिस्सा लिखवा कर लाए हैं हम।

छायालोक में हर सुबह, हर शाम और दोपहर को बुधवार से शनिवार तक एक घंटे के लिए गुलदस्ता यानी हम अलग-अलग प्रेजेंटर्स के माध्यम से महीने में लगभग 60-62 + 16 (गुलदस्ता) प्रोग्राम पेश करते हैं। हर प्रोग्राम में श्रोताओं से फोन के माध्यम से लाइव बातें होती हैं। कुछ लोगों को रोज़ लाईन मिल जाती है, कुछ को नहीं, बेचारे डायल कर-करके मायूस हो जाते हैं। ऐसे में हमारे पास एस.एम.एस., आपके ख़तों तथा ईमेल के ऑप्शन भी होते हैं।

होता क्या है कि कई बार हमारे साथी प्रेजेंटर्स इतने बढ़िया-बढ़िया प्रोग्राम लेकर आते हैं और कुछ लोगों की बात करने की तमन्ना धरी की धरी रह जाती है। तो, आज के छायालोक के माध्यम से आपको एक मौका दे रही हूँ कि अगर छायालोक का कोई विशेष एपीसोड आपको बहुत पसंद आया हो लेकिन उस दिन आपको लाइन न मिली हो, तो आज आप उस टॉपिक या प्रोग्राम को हमारे साथ शेयर कर सकते हैं, जो सचमुच आपके दिल को छू गया हो। श्रोताओं से मैंने यह भी आग्रह किया कि आज मैं प्रोग्राम लेकर आई हूँ और आपको एक मौका दे रही हूँ इसलिए यह क़तई ज़रूरी नहीं कि आप मेरे ही प्रोग्राम का उल्लेख करें। (हालांकि मैं जानती हूँ कि मेरे कुछ प्रोग्राम भी बहुत पसंद किए जाते हैं।)

इस तरह मैंने अपने शहर के श्रोताओं को एक मौका दिया फिर से अपनी बात हम तक पहुँचाने का। तो, आईए मैं आपसे शेयर करूं कि किस श्रोता ने क्या कहा :-

पहला फोन मिला दमदम एयरपोर्ट 1 नं. गेट से पप्पू जी का। वे टेलरिंग का काम करते हैं साथ-साथ दिन भऱ एफ. एम. बजता रहता है। काम भी चलता रहता है और गीत-संगीत का सिलसिला भी। पप्पू जी ने कहा कि दो-तीन दिन पहले रोशन जी एक प्रोग्राम लेकर आए थे, मुझे वह प्रोग्राम बहुत अच्छा लगा। अपने दिल की बात उस दिन कहना चाहता था परंतु लाइन नहीं मिल पाई।और आपके प्रो. का तो क्या कहना। हमेशा सुनते हैं। आपसे तो पहले भी कई बार बात हुई है। 

दूसरा फोन था सुनील बाग का रानीहाटी नाभघौड़ा से। उन्होंने बताया कि उन्हें शुक्रवार की शाम प्रसारित होने वाला रेनबो क्विज़ बहुत पसंद है। इससे जेनरल नॉलेज बढ़ता है।

तीसरा फोन था मसरूर का। उन्होंने कहा कि कुछ दिनों पहले ज़रीना जी ने पर्यावरण पर प्रोग्राम पेश किया था बहुत अच्छी-अच्छी बातें बताई थीं। वह प्रो. मुझे बहुत अच्छा लगा था, मैं छटपटाता रहा, लेकिन फोन नहीं लगा। और कुछ दिन पहले आपने क़व्वालियों पर प्रो. पेश किया था जिसे मेरे सभी साथियों ने बहुत पसंद किया था। आपने कुछ साल पहले भी क़व्वालियों पर प्रोग्राम पेश किया था वह भी मैंने सुना था।

चौथा फोन था बाली से किशोर का। उन्होंने कहा कि मैं मिताली दत्ता का ज़बर्दस्त फैन हूं। मुझे उनके प्रो. बहुत अच्छे लगते हैं। उन्होंने मन्ना डे पर प्रो. पेश किया था, बहुत अच्छा लगा था। किशोर जी ने यह भी कहा कि आप पहेलियों पर प्रोग्राम लेकर आती है, वह मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैं उन पहेलियों को नोट कर लेता हूँ और बाद में बांगला में अपने दोस्तों को सुनाता भी हूं। 14 ताराख को आपने पहेली पर प्रो. किया था, मुझे पान वाली पहेली का उत्तर मालूम था लेकिन लाइन नहीं लगी।

किशोर ने यह भी कहा कि दीदी एक दिन किसी श्रोता ने अपने एस.एम.एस में लिखा था कि आपकी आवाज़ कविता कृष्णमूर्ति से मिलती है। उसने सचमुच बहुत सही कहा था। आप गौर कीजिएगा, आपकी आवाज़ कविता कृष्णमूर्ति (बात-चीत की आवाज, गायकी वाली नहीं) से मिलती है।

चलिए जब दो व्यक्ति ऐसा कह रहे हैं तो मान लेना चाहिए। (90 के दशक में दूरदर्शन में अंग्रेजी समाचर वाचन किया करती थीं संगीता बेदी। उन्हें स्क्रीन पर देखते ही मेरी मम्मी कहा करती थीं कि ये तुम्हारे जैसे लगती है। मैंने मम्मी की बात को यूं ही हवा में उड़ा दिया कि आपकी तो आदत ही है लोगों की शक्लें मिलाते रहने की। फिर एक बार लोकल ट्रेन में मेरी एक दोस्त ने भी कहा कि तुम्हारी शक्ल अमुक न्युज़ रीडर से मिलती है। फिर तीसरी बार मेरे एक कुलीग ने कहा कि अमुक न्यूज रीडर से तुम्हारी शक्ल बहुत मिलती है तो मुझे लगा कि कुछ तो सच्चाई होगी, इतने लोग ग़लत नहीं हो सकते। हाँ, अब मेरे लुक्स ज़रूर चेंज हो गए हैं।)

पांचवा फोन था चंदननगर से सुनील कुमार दास का। इतने वर्षों में इनसे मेरी पहली बार बात हुई। सुनील जी ने संजीव देवचौधरी और मिताली दत्ता के प्रोग्रामों की बात कही। साथ ही उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले पॉपी जी वीक एंड फरमाईश लेकर आई थीं उसमें 1986 से 90 तक के उन्होंने कुछ ऐसे गीत बजाए जो बहुत कम सुनने को मिलते हैं। वह प्रोग्राम मुझे बहुत अच्छा लगा था लेकिन लाइन नहीं मिली थी, सो अपनी बात उस दिन कह नहीं सका लेकिन कुछ दोस्तों ने वही बात कही जो मैं कहना चाहता था। सो अच्छा लगा कि चलो किसी न किसी ने मेरे दिल की बात तो कह दी।

सुनील ने यह भी कहा कि मैं हिन्दीभाषी हूं लेकिन बांगला मुझे बहुत अच्छी लगती है। हिन्दी में भले ही न सही लेकिन मैं बांगला में एक से बढ़कर एक कविताएं लिख लेता हूँ। यह जानकर मुझे सचमुच बहुत अच्छा लगा।

छठा फोन था हावड़ा से बुल्टी का। बुल्टी से कल मेरी दूसरी बार बात हुई। हलाँकि उसके एस.एम.एस और ख़त मैंने कई बार प्रों. में शामिल किए हैं। बुल्टी ने कहा कि सुबह के प्रो. मैं सुनती हूँ लेकिन फोन नहीं कर पाती क्योंकि पढ़ने जाना होता है। मुझे आपके पहेली वाले प्रो. बहुत अच्छे लगते हैं। और 31 अक्तूबर को आपने नुसरत फतेह अली खान पर प्रो. पेश किया था वह मुझे बहुत अच्छा लगा था। उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले नुसरत दी ने रेनबो क्विज पेश किया था उसमें उन्होंने 6 बजे एक सवाल रखा था कि फ़िल्म वीरज़ारा में रानी मुखर्जी के किरदार का क्या नाम था। लगभग एक घंटे तक कोई भी उसका सही जवाब नहीं दे पाया। बाद में उन्होंने खुद ही जवाब बता दिया था।  मुझे उसका जवाब मालूम था लेकिन उस दिन मेरे मोबाइल में बैलेंस नहीं था, मैं चाहकर भी प्रो. में लाइन नहीं मिला सकी और न ही किसी दूसरे दोस्त को फोन करके जवाब बताने की पोजीशन में थी कि अगर उसे लाइन मिले तो वह बता दे। उस दिन मुझे बहुत अफसोस हुआ था बैलेंस न रहने का।

बुल्टी ने एक बात और कही कि मुझे आपकी एक बात और अच्छी लगती है कि अगर रेनबो चैनल पर समय की कमी से कुछ एस.एम.एस. पढ़ने से छूट जाते हैं तो आप उनको गोल्ड चैनेल के प्रो. में कोट कर देती हैं। हम तीन रुपए खर्च कर के मैसेज भेजते हैं, इस तरह हमारे पैसे वसूल हो जाते हैं। इसके लिए आपको बहुत-बहुत थैंक्स। (उल्लेखनीय है कि सुबह 9 से 10 तक रेनबो पर छायालोक प्रसारित होता है और उसके तुरंत बाद 10.15 बजे गोल्ड पर सुनहरे दिन)।

सातवां फोन था सांकराइल (हावड़ा) से बाबू खान का। उन्होंने भी कहा कि मेरे पहेलियों वाले प्रोग्राम उन्हें बहुत अच्छे लगते हैं। साथ ही यह भी कहा कि बहुत दिन पहले रौशन जी ने प्रोग्राम पेश किया था कि अपने पड़ोसी से कितने तंग हैं आप। यह प्रो. मुझे बहुत अच्छा लगा था।

आठवां फोन राधानगर (हावड़ा) से अरुण शासमंडल का था। उन्होंने कहा कि मैं मिताली दत्ता का बहुत बड़ा फैन हूँ। मैं बयां नहीं कर सकता। वे बहुत अनकॉमन गीत बजाती हैं। मेरा उनके साथ कोई खून का रिश्ता न होते हुए भी मानता हूँ कि मेरा उनके साथ खून का रिश्ता है क्योंकि गीतों के बारे में मेरी च्वॉयस उनके साथ बहुत मेल खाती है। मैने अरुण जी से कहा कि मिताली जी तो आजकल दूसरे शहर में हैं, यहाँ आएंगी तो आपकी बात मैं उन तक ज़रूर पहुंचा दूंगी।

फिर आगे कहा - और दिल से कहता हूँ कि आपके प्रो. भी मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। आपके प्रो. में लाइन मिल गई है, महज़ इसलिए नहीं कह रहा हूँ। ये आप भी जानती हैं कि आपके प्रो. बहुत अच्छे होते हैं। आज भी आपने गीत बजाया, पैगाम दे रही है ये शाम ढलते-ढलते। बहुत अच्छा गीत है। ये गीत रेनबो पर पहली बार बजा है। आप ही बताइए पहली बार बजा कि नहीं, आपने पहली बार बजाया है। जवाब में मैंने कहा कि मैं यह दावा नहीं कर सकती कि रेनबो पर पहली बार बजा है, हाँ इतना कह सकती हूँ कि मैंने आज पहली बार बजाया है। साथ ही उन्होंने कुछ बांगला प्रोग्रामों का उल्लेख भी किया। ख़ास तौर से शशांक घोष के प्रोग्राम का।

नौंवा फोन बबलू जी का था सांकराइल झील पार्क से। मैंने कहा कि आप तो रोज़ ही आते है फोन पर। आज क्या ख़ास कहना है। उन्होंने कहा कि रेनबो छायालोक से हमें मुहब्बत हो गई है, हम लोग इसके बिना रह ही नहीं पाते। ऊपर वाले और आप लोगों की दुआ से अक्सर लाइन मिल जाती है। उन्होंने कहा कि कुछ दिनों पहले अमर जी ने प्रो. किया था कि कोई काम करके आपको कितनी खुशी मिलती है। उस दिन मुझे लाइन नहीं मिली। मैंने एक दिन देखा कि एक लड़की का साईकिल में दुपट्टा फंस गया था। मैंने उसे इसके बारे में बताया और दुपट्टा छुडाने में उसकी मदद की। सचमुच उस दिन मुझे बहुत खुशी हुई थी यह काम करके। उन्होंने यह भी कहा कि आप शनिवार की शाम कभी वीक एंड फऱमाईश लेकर ज़रूर आईए।

आख़िरी फोन था मंटु टेलर का सांकराइल से ही। उन्होंने कहा कि 5-9-2001 को स्व.मदन सूदन जी ने आँखों पर प्रो. पेश किया था कि आँखों की क्या अहमियत है हमारे शरीर में। मदन जी तो रहे नहीं, दीदी मुझे वो प्रो. आज भी याद है। सचमुच आँखें न हों तो हम दुनिया में कुछ भी नहीं देख सकते। यह प्रो. दिल को छू गया था।

इसके बाद मैंने दोस्तों से प्रो. ख़त्म करने की इजाज़त लेते हुए अगली मुलाक़ात का वादा करते  हुए अंतिम गीत बजाया आधी रात को पलकों की छांव में बुझ गया प्यार का दीया फिल्म परंपरा से लता जी की आवाज़ में।

मैंने नोटिस किया कि प्रो. का आखिरी गीत बज रहा है और फोन के सिग्नल अभी भी टिमटमा रहे हैं। वैसे उस समय फोन रिसीव करने की बात ही नहीं है लेकिन मैंने सोचा आज एक मौक़ा दिया गया था अपनी बात फिर से कहने का तो पता नहीं कौन हैं जो अभी भी ट्राई किए जा रहे हैं। फोन रिसीव किया तो पाया कि संटु मल्लिक लाइन पर थे। उनके भी कई एस.एम.एस. और ख़त प्रो. में शामिल किए हैं मैंने। 

उन्होंने इन जेनरल देवयानी, रजविन्दर, रौशन को अपनी पसंद बताया। और कहा कि आप तो हैं ही। मैंने कहा मेरा नाम लेना ज़रूरी है क्या ? उन्होंने कहा कि यह तो आप भी जानती हैं कि आप नाम लेना ही चाहिए, यकीन मानिए दिल से कह रहा हूँ। मैं ऑन एयर ज़्यादा नहीं आता। मुझे लगता है कि एक प्रेजेंटर इतनी मेहनत से प्रो. तैयार करके लाता है, अगर ठीक तरह से टॉपिक पर न बोला जा सके तो लाइन पर नहीं आना चाहिए। टॉपिक से हट कर कुछ ग़लत या उल्टा-सीधा बोल देने से प्रेजेंटर का असम्मान होगा। कितनी अच्छी सोच है संटु मल्लिक की। (हम अक्सर श्रोताओं से कहा करते हैं कि अगर सही में कुछ कहने को हो तो लाइन मिलाएं। केवल अपना नाम सुनने के लोभ से लाइन न मिलाएं क्योंकि ऐसे बहुत से लोग जिन्हें सचमुच बहुत कुछ कहना होता है और वे बहुत अच्छे वक्ता होते हैं लेकिन उन्हें लाइन नहीं मिल पाती।) साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आप प्रो. में एस.एम.एस. का ऑप्शन ज़रूर रखा करें।

फिर संटु ने कहा कि दीदी बाली से जो किशोर ने आपसे कहा न कि किसी श्रोता ने आपको कहा था कि आपकी आवाज़ कविता कृष्णमूर्ति से मिलती है। वो मेरी ही बात कर रहा था, मैंने ही आपके प्रो. में एस.एम.एस किया था। मैंने पलट कर पूछा सही में मिलती है क्या ? उन्होंने कहा, कभी उनका कोई इंटरव्यू सुन कर देखिएगा। एक दिन हम रेडियो के किसी चैनेल पर उनका इंटरव्यू सुन रहे थे तो अचानक मेरे भईया ने कहा कि अरे ये तो बिलकुल नीलम शर्मा जैसी आवाज़ है।

संटु मल्लिक ने इतनी बातें कीं बिलकुल सधी हुई हिन्दी में। मैंने उनसे कहा, आप तो बांगलाभाषी हैं, है न। उन्होंने कहा हाँ। मैंने कहा, आप बहुत अच्छी हिन्दी बोलते हैं। उन्होंने कहा, बस ऐसे ही आप लोगों को सुन-सुन कर कोशिश करता हूँ। मैंने कहा, नहीं, सचमुच आप बहुत अच्छी हिन्दी बोलते हैं, इसे जारी रखिए। उन्होंने कहा प्रो. तो खत्म हो गया आपका, मुझे उम्मीद नहीं थी कि आप इस वक्त फोन उठा लेंगी। भगवान ने मेरी सुन ली, जो आपने फोन उठा लिया और मेरी आपसे बात हो गई। चूँकि प्रोग्राम से इजाज़त ली जा चुकी थी, इसलिए उन्हें ऑन एयर नहीं लिया जा सकता था। मैंने उनसे हैंडसेट पर ही बात की। उन्होंने कहा, ऑन एयर नहीं जा पा रहा कोई बात नहीं। दीदी आप तक बात पहुँचाने का मौका मिल रहा है, यही बड़ी बात है।

प्रो. ख़त्म कर जब स्टूडियो से ड्यूटी रूम में आई तो ड्यूटी ऑफिसर ने कहा, बहुत अच्छा प्रो. किया।  तुमने तो श्रोताओं से कह दिया था कि आज मैं यह प्रो. पेश कर रही हूं तो मेरा ही नाम मत लें। फिर भी श्रोताओं ने तुम्हारे प्रोग्रामों को कोट किया। मैंने हंसकर कहा, क्या आपको नहीं लगता कि मैं भी बढ़िया प्रोग्राम करती हूं। उन्होंने कहा कि पता नहीं क्य़ों दूसरे लोग यह मान कर चलते हैं कि अपने प्रोग्राम में दूसरे प्रेजेंटर्स का नाम ले देने से या तारीफ़ कर देने से अपनी पॉपुलैरिटी कम हो जाएगी। तुमने तो ऐसा नहीं किया। तुमने सबके प्रोग्रामों के बारे बेबाकी से बोलने का मौका दिया। 

जवाब में मैंने इतना ही कहा कि दादा, खुद में आत्मविश्वास होना चाहिए अपनी परफॉर्मेंस के प्रति। जब हम अच्छा प्रो. करते है तो मन ही मन आत्म-संतुष्टि मिलती है कि हां मैंने श्रोताओं को अच्छी प्रस्तुति दी। 

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07 मई 2011

प्रेम धवन को याद करते हुए.....





अब तो सोने दे ऐ दिल घड़ी दो घड़ी
देख तारों को भी नींद आने लगी।


आज ही के दिन 2001 में हृदयाघात से गीतकार, संगीतकार, नर्तक, नृत्य निर्देशक पद्मश्री प्रेम धवन का मुंबई के जसलोक अस्पताल में 77 वर्ष की आयू में निधन हो गया था।

13 जून 1924 को हरियाणा में जन्में प्रेम धवन लाहौर से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद बंबई की प्रसिद्ध संस्था इप्टा से जुड़ गए।

1946 में इप्टा द्वारा ही निर्मित और के. ओ. अब्बास निर्देशित हिन्दी फ़िल्म धरती के लाल से बतौर गीतकार प्रेम धवन ने फ़िल्म क्षेत्र में पदार्पण किया। गीत के बोल थे सुनो मनुवा नैया ये। इसी फ़िल्म के लिए लिखे उनके अन्य चार गीत थे जय धरती मैया/केकरा केकरा नाम बताव/ आज सूखे खेतों में/ बढ़ता जा।

इसके बाद बॉम्बे टॉकीज़ में प्रवेश करते हुए 1948 में फ़िल्म ज़िद्दी के लिए कई गीत लिखे, जिसमें लता मंगेशकर का गाया गीत जादू कर गए किसी के नैना बहुत हिट हुआ। फिर 1951 में फ़िल्म तराना के लिए लिखा उनका गीत सीने में सुलगते है अरमां बेहद हिट रहा।

बचपन में हफ़ीज़ और वारिस शाह जैसे लेखकों के लेखन और माँ द्वारा गाए जाने वाले भजनों और दोहों ने उनके जीवन का रुख गीतकार, संगीतकार, कोरियोग्राफी के करियर की तरफ मोड़ा।

प्रेम धवन के पिता लाहौर जेल के वॉर्डन थे, वहाँ प्रेम धवन को स्वतंत्रता सेनानियों को क़रीब से देखने का मौका मिला।सय्याद मुतालवी और शहीद भगत सिंह के बाई कुलबीर सिंह जैसे सेनानियों ने उनके मन में देश प्रेम का वीजवपन किया और उसे मजबूती प्रदान की। अगर आप गौर करें तो पाएंगे कि देशप्रेम पर लिखे उनके गीत ज़्यादा लोकप्रिय हुए ।

उन्होंने प. रविशंकर से संगीत और उदय शंकर ट्रुप से नृत्य की तालीम ली। शहीद, पवित्र पापी जैसी फिल्मों का संगीत निर्देशन भी किया।  फ़िल्म नया दौर के गीत उड़ें जब जब ज़ुल्फें तेरी और विमल राय की दो बीघा ज़मीन में हरियाल सावन ढोल बजाता आया गीतों में उनकी कोरियोग्राफी काबिल-ए-तारीफ़ है।

बकौल शायर सरदार अली जाफ़री  - प्रेम धवन के गीतों और नज़्मों में देश की माटी की सुगंध और ध्वनि देखते ही बनती है।

 बकौल प्रेम धवन फ़िल्मों में मेरे देशभक्ति के गीत ज़्यादा मशहूर हुए हैं, इसलिए ज़्यादातर लोग मुझे इन्क़लाबी और तरक्कीपसंद शायर के रूप में ही जानते हैं लेकिन मैंने हर तरह के गीत लिखे हैं।
बतौर गीतकार, संगीतकार, कोरियोग्राफर उन्होंने 55 वर्षों का सफ़र तय किया। वे अपने गीतों, ग़ज़लों और नज़्मों का संग्रह दिलों के रिश्ते प्रकाशित करवाना चाहते थे परंतु उनकी इस ख्वाहिश को उनके निधन के उपरांत उनकी पत्नी उमा प्रेम धवन ने प्रकाशित करवा कर पाठकों तक पहुँचाया। उनकी नज़्मों की बानगी देखें -

(1)   

दिलों के रिश्ते बहुत ही अजीब होते हैं
जो दूर हो वही अक्सर करीब होते हैं
मिले कई हसीं सनम मगर तेरी कमी रही
तेरे ही रुख ये आज तक नज़र मेरी जमी रही।


(2)

 ज़िंदगी जब समझ में कुछ आने लगी
ज़िंदगी छोड़कर हमको जाने लगी
जब किनारा नहीं तो भंवर ही सही
अपनी कश्ती कहीं तो ठिकाने लगी
बुझ गए रास्ते के सभी जब दीये
रौशनी दिल की रास्ता दिखाने लगी
चटकी है बाग में कोई ताज़ा कली
आज सारी फिज़ा मुस्कुराने लगी
कूकी कोयल तो फिर याद आई तेरी
इक घटा गम की फिर दिल पर छाने लगी
ख़ैर हो ऐ खुदाया के इस उम्र में
एक कमसिन नज़र दिल लुभाने लगी
अब तो सोने दे ऐ दिल घड़ी दो घड़ी
देख तारों को भी नींद आने लगी।


प्रस्तुति - नीलम अंशु

01 मई 2011

आज स्व. बलराज साहनी जी का जन्म दिन  है। उन्हें हमारी श्रद्धांजलि। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। बेहद उम्दा अदाकार के साथ-साथ वे साहित्य सर्जक भी थे। उनके भाई भीष्म साहनी ने जहां हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया वहीं उन्होंने पंजाबी में साहित्य रचना की। पहले वे अंग्रेजी में लिखा करते थे। शांतिनिकेतन में गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के प्रोत्साहन पर कि साहित्य सृजन व्यक्ति को अपनी मातृभाषा में करना चाहिए, वे पंजाबी की तरफ उन्मुख हुए। 2004 में उनकी सहधर्मिणी श्रीमती संतोष साहनी जी से  मुंबई में उनके आवास पर मिलने का मौका मिला था।

बलराज साहब पर फिल्माया नीलकमल फिल्म में बाबुल की दुआएं लेती जा तथा वक्त का ऐ मेरी ज़ोहराज़बी मेरे पसंदीदा गीतों में से हैं। 


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