आज भी आकाश में पूरब की लाली छाने को व्यग्र है। उस दिन और आज के दिन में कितना अंतर है ? उस दिन जिसके हाथों पिच कर चला आया था, आज वह व्यक्ति चिर निद्रा में सो रहा है। शमीक ने धीरे-धीरे अरुण गांगुली के चेहरे की तरफ देका। ख़ामोश पीड़ा का दस्तावेज था मानो वह चेहरा। शमीक ज़्यादा देर तक और नहीं देख पाया। भीतर से बार-बार रुलाई फूट रही थी। दरअसल, शमीक बहुत ही कृतज्ञ है। एक दिन की कोई किसी व्यक्ति का सही परिचय नहीं हो सकती, इस बात को उसके सिवा कौन समझ सकता है ?
उम्मीद के मुताबिक बासंती समयानुसार बंबई के खार के फोर्टिंथ एवन्यु के फ्लैट पर पहुंचीं। बदन पर सफेद साड़ी और सफेद ब्लाउज था। शिथिल क़दमों से पलंग की तरफ बढ़ते हुए मानो पांव जम से गए। कौन कहेगा अरुण नहीं रहे ? मानो सो रहे हों। ज़रा सा पुकारने पर ही उठ बैठेंगे। बासंती विभोर होकर अरुण का चेहरा देखने लगीं। पता नहीं कौन उनके कानों में शांत स्वर में कहा रहा था – ‘माफ़ कीजिएगा, आपके पास कोई स्पेयर टिकट होगा ?’ उनके साथ अरुण का यही प्रथम वार्तालाप था।
टकटकी लगाए काफ़ी देर तक देखते रहने के बाद बासंती मानो कांपने लगीं। उनके भीतर की उठा-पटक उनके चेहरे पर भी स्पष्ट झलक रही थी। वे कैसे रुलाई रोक रही थीं, यह उन्हें देखे बिना नहीं समझा जा सकता था। थोड़ा सा रो लेने पर मन का बोझ ज़रा हल्का हो जाता, पर बासंती ने एक बूंद भी आँसू नहीं बहाया। अभिमान की पराकाष्ठा पर पहुंच उन्होंने खुद को शोक-ताप से परे करने की कोशिश की। सबकी नज़रों से बचा लेने के बावजूद शमीक से खुद को छुपाए रखना इतना आसान नहीं। एक व्यक्ति कितना असहाय और दिग्भ्रमित हो सकता है, शमीक ने यह बहुत ख़ामोशी से महसूस किया।
अरुण के माथे पर बार-बार एक मक्खी बैठ रही थी। हाथ बढ़ा कर बासंती ने एक बार फिर खींच लिया। अरुण का स्वर अभी भी मानो गूंज रहा था – ‘तुम मुझे अब कभी मत छूना, कभी नहीं।’ बासंती कैसे उन्हें स्पर्श करे ? एक व्यक्ति का बार-बार अपमान नहीं किया जा सकता। अरुण को सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही व्यक्ति स्पर्श कर सकता है। बासंती ने शमीक की तरफ देख धीरे-धीरे कहा – ‘मैं चाहती हूं कि उनका अंतिम कार्य तुम ही करो। मेरे तो अब यहां रुकने की ज़रूरत नहीं, मैं चलूं.......।’
‘आप चली जाएंगी ?’
‘रुक कर क्या करूंगी ? सारे रिश्ते तो ख़त्म हो गए।’
‘फिर भी शमशान तक तो चलिए ?’
‘क्यों ज़ोर डाल रहे हो ? कोई ज़रूरत नहीं है ’ – बात न बढ़ा कर बासंती सीधे लिफ्ट की तरफ बढ़ गईं।
हैरानी का खुमार ख़त्म होने में पांच मिनट लगे। अभिरूपा ने पति की आँखों में आँखें डाल हताश स्वर में कहा – ‘बासंती देवी के बारे में धारणा ही बदल गई। भद्र महिला अभी भी बहुत मूडी हैं। मायामोह को बहुत पहले ही उन्होंने त्याग दिया है।’
शमीक ने कुछ नहीं कहा। गंभीर स्वर में कहा – ‘प्यार मर जाता है, पता नहीं था। आज यह भी पता चल गया।’
० ० ०
अगले दिन बंबई के हर मराठी और अंग्रेजी अख़बार में एक छोटी सी ख़बर छपी। पिछले दिन शमशान का काम निपटा कर लौटने में देर हो गई थी, इसलिए शमीक ज़रा देर से ही जगा। हर दिन की तरह चाय पीते-पीते अख़बार पढ़ते हुए शमीक की आँखें पथरा गईं। जो ख़बर वह पढ़ रहा था, वह थी – ‘कल जुहू बीच पर लगभग साठ-बासठ वर्षीया एक अज्ञात महिला का शव तैरता मिला। उसके बदन पर सफेद पोशाक थी। पुलिस इसे आत्महत्या मान रही है।’
पथराई निगाहों से शमीक ख़बर की तरफ देखता ही रहा।
उपन्यास अंश – गोधूलि गीत
लेखक – श्री समीरण गुहा
बांग्ला से अनुवाद – नीलम शर्मा ‘अंशु’
प्रकाशक–डॉ. सुधाकर अदीब, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान।
* भारतीय भाषाओं की साहित्यिक कृतियों की अनुवाद योजना के अंतर्गत प्रकाशित।
पुस्तक मंगवाने का पता -
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 6, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी भवन,
महात्मा गांधी मार्ग, लखनऊ।
मूल्य – 120/- रुपए
महात्मा गांधी मार्ग, लखनऊ।
मूल्य – 120/- रुपए
दूरभाष - 0522261447०/71
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