सुस्वागतम्
समवेत स्वर पर पधारने हेतु आपका तह-ए-दिल से आभार। आपकी उपस्थिति हमारा उत्साहवर्धन करती है, कृपया अपनी बहुमूल्य टिप्पणी अवश्य दर्ज़ करें।
-- नीलम शर्मा 'अंशु
23 अप्रैल 2009
‘एडस्’ पर पहली हिन्दी फीचर फिल्म - - फ्लैश बैक - (1) जनसत्ता/कोलकाता/09-2-1996
‘एडस् ’ ! यह नाम जुबां पर आते ही बदन में सनसनी सी दौड़ जाती है। यह बीमारी अनजाने में ही मनुष्य को अपनी जकड़ में ले लेती है और उसे मौत के मुंह में धकेल देती है। यद्यपि लोगों में जागृति उत्पन्न करने के लिए इस विषय से संबंधित काफ़ी प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, तरह-तरह के प्रचार माध्यम अपनाए जा रहे हैं, फिर भी यह स्थिति ज्यों की त्यों हैं। ‘भारतीय दर्शक बाल सुलभ ही हैं, वे कड़वी गोली को तब तक निगलते रहेंगे, जब तक उस पर मिठास की परत है। ’ यह कहना है जाने-माने फिल्म निर्माता चेतन आनंद का जिन्हें इकबाल चन्ना अपना ‘गुरु’ मानते हैं। ऐसे गंभीर और ज्वलंत विषय पर वृत्तचित्र बनाने का कोई फायदा नहीं, क्योंकि वृत्तचित्र लोगों का ध्यान कम ही आकर्षित कर पाते हैं, ऐसा मानना है इकबाल का । व्यापक स्तर पर सामाजिक जागरूकता उत्पन्न करने के लिए फीचर फिल्में ही आदर्श माध्यम हैं । इस रोग के विषय में अधिक से अधिक प्रचार और जानकारी उपलब्ध करवाना ही इकबाल का उद्देश्य है क्योंकि इसका सामना करने का एकमात्र यही उपाय है। इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है – द्विभाषी फीचर फिल्म ‘नया तोहफा’जो कि पंजाबी और हिन्दी में साथ-साथ बन रही है। ‘नया तोहफा’ पंजाबी कथाकार जसवंत सिंह विरदी की कहानी पर आधारित है। यह कथा समाज की दो विशाल समस्याओं, एडस् व अधिकार हनन की प्रताड़ना पर रौशनी डालती है । एडस् संक्रमण का मुख्य शिकार है ‘ट्रक चालक वर्ग’। ‘नया तोहफा’ की कथावस्तु एक समृद्ध ट्रक-मालिक-चालक बलबीर सिह(अवतार गिल) पर केंद्रित है जो अपनी लापरवाही के कारण एचआईवी से संक्रमित पाया जाता है। निरीक्षण करने पर उसे जहां एडस् से प्रभावित बताया जाता है वहीं उसकी पत्नी रेशम(कुलबीर बडेसरों) को पूर्णत: स्वस्थय और एडस् रहित करार दिया जाता है। पति की यौन संबंधी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए रेशम, नौकरानी संतो(साहिबा) को रख लेती है। मासूम और निरीह संतो भी इस घातक रोग की शिकार हो जाती है। धूर्त पत्नी इस घृणित कांड को पारिवारिक प्रतिष्ठा की आड़ में छुपाए रखती है पर वह तब टूट जाती है जब उसे अपनी इस गोपनीय धूर्तता की बड़ी भारी क़ीमत चुकानी पड़ती है । जब उसके पति की मृत्यु के पश्चात् उसका नौजवान बेटा भी संतो में रुचि लेना शुरु कर देता है और एचआईवी से संक्रमित होकर मौत के क़गार पर आ जाता है।रेशम क्रोध और घृणा से संतो को घर से निकाल देती है। अब अभागी युवती को गांववासियों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है। वह अस्पताल में दम तोड़ देती है तथा उसे ‘प्रथम एडस् पीड़ित’ करार दिया जाता है। और इस तरह उन सभी लोगों के दिलों में भय छा जाता है जिन्होंने उसके साथ शारीरिक संबंध रखे थे। ‘यह विषय काफ़ी मजबूत पकड़ वाला है, इसलिए फिल्म निश्चित रूप से सफल होगी’, आशावादी लहज़े में कहते हैं इकबाल। इस शिक्षाप्रद मनोरंजक फिल्म में मशहूर संगीतकार रवि के निर्देशन में छह गीत हैं।ज़्यादातर आऊटडोर शूटिंग मध्यप्रदेश के दुर्ग-भिलाई के हाईवे की है, जहां राह किनारे वेश्यावृत्ति सरेआम प्रचलित है। इसलिए अपने गुरु चेतनजी (जिनसे पांच सालों तक इकबाल चन्ना ने प्रशिक्षण लिया) की भांति यथार्थ और रोमांस में संतुलन बनाए रखने में चन्ना प्रयासरत हैं। चन्ना ने भारतीय स्वास्थय संस्थान के डॉक्टरों से विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इस फिल्म का निर्माण किया है। प्रोड्यूसर हैं बलबीर झाज। कलाकार हैं – अवतार गिल, कुलबीर बडेसरों व साहिबा। कथाकार – जसवंत सिंह विरदी और पटकथा लेखक हैं कुलदीप बेदी और जे़ड ए जौहर। - नीलम शर्मा ‘अंशु’
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं