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09 मई 2023


                                                      लहरों की तरह यादें (1)

                     "तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है".........  (09/05/2017)  


लोग कहते हैं आप तारीखों को याद कैसे रख लेती हैं? मैं उन्हें किसी न किसी तरह एक-दूसरे के साथ पंच कर लेती हूँ। आज ऑफिस में (दिल्ली) जाते ही बांग्लाभाषी कलीग ने कहा, जानती हैं आज 25 बैसाख है यानी रबींद्र जयंती? मैंने कहा आपको व्हाट्स ऐप्प ने याद दिलाया होगा पर मुझे याद दिलाने की ज़रूरत नही पड़तपहली बात तो यह कि बंगभूमि में जन्म लिया, दूसरी यह कि अब तक कि उम्र का 90% हिस्सा बंगाल में गुज़रा। तीसरी, रवीन्द्र नाथ मेरे जीवन में इस तरह से शामिल हैं कि 1998 को रवीन्द्र जयंती के दिन मेरे पिता का निधन हुआ। रवीन्द्र जयंती का दिन यानी बांग्ला कैलेंडर का 25 बैसाख (9 मई) सदैव के लिए अविस्मरणीय बन गया मेरे लिए। फिर 8 वर्षों बाद 2006 में मेरी दादी का निधन भी 9 मई को हुआ। रवीन्द्र जयंती की छाप और याद ज़हन में और भी पुख्ता हो गई। और.... 9                                                   मई, 2017 को एक मात्र शेष रहे मामा जी ने भी अंतिम सांस ली थी।

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                                              लहरों की तरह यादें....(2)


                                    “जब जब बहार आई और फूल मुस्कुराए मुझे तुम याद आए।

                                देखी नज़र ने खुशियां या देखे ग़म के साए मुझे तुम याद आए।”


(09/05/2014 - कोलकाता।) कल शाम एफ. एम. गोल्ड (कोलकाता) के कार्यक्रम में पहला गीत फिल्म रोटी कपड़ा मकान से मैं न भूलूंगा बजाने के बाद जब दूसरा गीत बजाया ये, तो अचानक ‘देखी नज़र ने ………….’ पंक्ति के दौरान अचानक आँखें नम हो आईं। गीत का चयन करते या बजाते समय ऐसी कोई बात ज़ेहन में नहीं थी। मुश्किल से भावनाओं को नियंत्रित किया ताकि नम आँखों के साथ-साथ आवाज़ भी नम न हो जाए ऑन एयर। रोने में तो मुझे पल भर भी नहीं लगता, हाँ हँसने में भले ही लग जाए और गंगा-यमुना तो पलकों पर हमेशा मौजूद रहती है छलकने को। याद आता है 1999 में बचपन पर आधारित कार्यक्रम में एक श्रोता श्रीमती चक्रवर्ती (क्रिस्टोफर रोड से) प्रोग्राम में अपने पिता की यादों को शेयर करते हुए ऑन एयर फूट-फूट कर रो पड़ी थीं। मैंने उन्हें बहुत अच्छे तरीके से संभाला। मेरे पिता जी का भी कुछ महीने पूर्व ही निधन हुआ था। घर पर प्रोग्राम सुन रहीं मेरी कलीग गीता दी ने अगले दिन ऑफिस में मुझसे कहा कि मेरी तो जान सूख रही थी कि अब तो नीलम गई काम से, उस श्रोता के साथ-साथ तो ये भी रो पड़ेगी अपने पिता को याद कर। अब इसकी आवाज़ नम हुई कि हुई। भगवान की कृपा से उस वक्त तो मेरा ध्यान इस बात पर बिलकुल नहीं गया, जाता तो ज़रूर विचलित हो जाती और ऑन एयर नहीं संभाल पाती खुद को। हाँ, यह ज़रूर है कि गीता दी के ऐसा कहते ही मैंने रोते हुए कहा कि भगवान की कृपा से मुझे उस वक्त बिलकुल अपने पिता का ध्यान नहीं आया था, ध्यान सिर्फ़ प्रो. की प्रस्तुति पर था।


                                            प्रस्तुति : नीलम शर्मा ' अंशु '

                                                  09/05/2023




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