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21 मई 2013


 आखिर ऊपर बैठा वो फ़नकार इतनी विविधता कहाँ से लाए...... 


शुक्रवार, 17 मई 2013 - शाम को ऑफिस से घर के लिए निकली तो गेट पर एक मित्र मिल गई। उनसे वहीं खड़े-खड़े बातें हो रही थीं कि एक कलीग भी पास से गुज़रे, साथ में उनकी बिटिया थी। चूँकि बचपन से वह मुझे जानती है तो रुक कर उसने भी बात की। मैंने कहा, अगली बार आओ तो मिल कर जाना, खूब बातें करेंगे। और जाते-जाते वह कह गई बांगला में - सेलिब्रिटिज इस तरह यहाँ खड़े बातें करते मिल जाएंगे कौन सोच सकता है भला ? उसे देख कर मेरी मित्र ने कहा देखो ये लड़की हुबहु अपने पिता जैसी दिखती है, वैसे ही होंठ, वैसी ही मुस्कान। कुछ देर और अपनी उस मित्र से बातें करने के बाद हमने अपनी-अपनी राह पकड़ी। मेट्रो से उतर कर सोचा, कुछ सामान लेते हुए चला जाए तो एक दुकान का रुख किया। कुछ देर बाद दुकान पर एक और महिला गाहक आईं। अचानक देखा, मेरी तरफ देख वे अकेले-अकेले मुस्कुरा रही हैं। मैंने भी एक बार गौर से देखा, पर वे परिचित नहीं जान पड़ीं। सामान लेकर जाते वक्त उन्होंने बांगला में ही कहा - 'एक्सक्यूज मी, आपकी शक्ल मेरी छोटी बहन से हु-ब-हु मिलती है, पल भर के लिए तो मैं चौंक ही गई।' जवाब में मैंने उनका मन रखने के लिए कहा - थैंक्स, सो स्वीट। आप कहाँ रहती हैं। उन्होंने कहा - यहीं पास में रहती हूं, पर मेरी बहन राणाघाट में रहती है कहकर फिर से मुस्कुराते हुए वे चली गईं। (ये जगह हमारे वहाँ से कई किलोमीटर के फासले पर है, य़ानी एक उपनगर है)



जब स्कूल में पढ़ती थी तो एक बार मेरी हमउम्र ममेरी बहन मध्य प्रदेश से आई हुई थी छुट्टियों में हमारे घर। लिहाज़ा वह घर पर ही रहती और मैं स्कूल चली जाती। घर के सामने रास्ते से गुज़रने वाली महिलाएं उसे नीलम समझ कर पूछतीं - आज स्कूल नहीं गई ? जवाब में मेरी मम्मी कहतीं - नीलम तो स्कूल तो गई है, ये तो मेरी भतीजी है। जबकि मेरी उसकी शक्ल में इतनी समानता भी नहीं थी। 



90 के दशक में डी. डी.1 पर अंग्रेजी की समाचारवाचिका हुआ करती थीं - संगीता बेदी। हमारी माँ को लोगों की शक्लें मिलाने की आदत है।एक दिन माँ ने कहा, ये बिलकुल तुम्हारे जैसी लगती है। मैंने कहा - आपको तो और कोई काम है नहीं, बस शक्लें मिलाती रहतीं है आप। लेकिन कुछ दिनों बाद लोकल ट्रेन में मेरी एक मित्र ने भी कहा कि अरे तुम्हारी शक्ल अमुक न्यूज रीडर से मिलती है। संयोग की बात कि कुछ ही दिनों बाद फिर मेरे एक सीनियर कलीग ने भी कह डाला कि अरे नीलम तुमने ध्यान दिया है वो इंगलिश न्यूज री़डर आती है न, तुम्हारी शक्ल उससे बहुत मिलती-जुलती है। मैंने सोचा, तीन-तीन लोग कह रहे हैं तो चलो कुछ हद तक समानता होगी। घर आकर माँ को भी खुश करने के लिए बता दिया कि आपके साथ-साथ और दो लोगों ने भी यही बात कही है। बड़े भाई साहब ने एक दिन कह दिया कि दिल्ली जाओ और संगीता बेदी से मिलकर कहना कि लोग मुझे आपके जैसी कहते हैं।




अभी पिछले साल मेरे एक श्रोता संटु मल्लिक ने कहा कि दीदी आपकी आवाज़ कविता कृष्णमूर्ति की आवाज़ से मिलती है (गायकी वाली आवाज़ नहीं जब वे साधारण बात-चीत करती हैं तो)। उसने कहा हम टी.वी. पर उनकी इंटरव्यु देख रहे थे तो अचानक मेरे भाई ने कहा कि अरे इनकी आवाज़ तो नीलम शर्मा से मिलती है। ख़ैर मैंने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि आज तक मैंने कविता कृष्णमूर्ति जी की सिर्फ़ गायकी वाली आवाज़ ही सुनी है।

पिछले दिनों मेरी एफ. एम. कलीग कविता झा ने भी एक दिन कह ही दिया कि नीलम जी, आपने गौर किया है कि आपकी आवाज़ कविता कृ. जैसी है। मैंने तुरंत कहा पता नहीं, तुमसे पहले भी संटु मल्लिक ने यही बात कही थी।




आखिर ऊपर बैठा वो कुम्हार इतनी विविधता कहाँ से लाए...... हलाँकि मैं तो यही कहा करती हूँ कि मैं किसी के जैसी नहीं, अपने जैसी हूँ।



प्रस्तुति - नीलम शर्मा 'अंशु'

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