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21 अगस्त 2012

पहलकदमी की उधेड़बुन में तुम रहे न तुम, हम रहे न हम






  अभी-अभी हमने दशहरा और ईद-उल-अजहा मनाया और 
अब दीवाली का है इंतज़ार.......



पहलकदमी की उधेड़बुन में
तुम रहे न तुम, हम रहे न हम
दरमियां गर कुछ रहा 
तो बस फासला ही फासला...
ऐसे में कैसी ईद, कैसी दीवाली ?
जब दिल ही हो खाली
भावनाओं और अहसासों से परे
तो शेष रह जाता है
सिर्फ़ शून्य और शून्य.......


(नीलम शर्मा 'अंशु')


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